हिमशिखर खबर ब्यूरो।
समय बदला, सत्ता बदली तो लंका के भीतरी और बाहरी दृश्य भी बदल गए। जो लोग कभी रावण को देखकर कहा करते थे- तेरे जलवों में खुदा नजर आता है..। अब ये ही लोग उसे गाली दे रहे थे। फिर, जिन राक्षसों ने कभी हनुमानजी की खिल्ली उड़ाई थी, अब उनकी जय-जयकार करने लगे थे।
रावण को मारने के बाद श्रीराम ने हनुमान से कहा अब तुम लंका में जाओ, जानकी को समाचार दो, उनके हाल जानो और लौट आओ। जब हनुमानजी लंका के भीतर गए तो तुलसीदासजी ने लिखा- ‘तब हनुमंत नगर महुं आए। सुनि निसिचरी निसाचर धाए। बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही।’
सारे राक्षस-राक्षसी हनुमानजी के स्वागत-सत्कार में दौड़ पड़े। बहुत प्रकार से उनकी पूजा की और फिर उन्हें सीताजी के पास ले गए। ये वो ही लोग थे, जिन्होंंने पहले (पूंछ में आग लगाते समय) ‘मारहिं चरन करहिं बहु हांसी।’ हनुमानजी को साधारण वानर जान लात मारी थी, बहुत हंसी उड़ाई थी। अब, जब दृश्य बदल गया तो जय-जयकार करने लगे। समझने की बात यह है कि इस प्रकार का दोहरा आचरण, मौका देखकर नीयत बदल लेना आसुरी वृत्ति है। समय सबका बदलता है। सही गलत हो जाता है, गलत सही हो जाता है।