कुसंगति से जीवन को बचाना चाहिए। कुसंग का परिणाम कभी अच्छा नहीं होता है। मंथरा के कुसंग में आने के बाद कैकेयी की बुद्धि भ्रमित हो गई। कुसंग होने पर भ्रम पैदा होता है। जो बुद्धि को सत्य मार्ग की तरफ चलने नहीं देता। शुभ संगति को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। मनुष्य का सबसे ज्यादा पतन कुसंग के कारण ही होता है। मांस, मदिरा, गुटखा, नशा, चोरी, दुराचार आदि की बुरी आदतों का एक मुख्य कारण कुसंग ही होता है। अच्छे अच्छे लोग कुसंग में पड़कर भ्र्ष्ट हो जाते हैं ।
हिमशिखर खबर ब्यूरो।
श्रीराम राजा बनने वाले थे तो अयोध्या में सभी लोग बहुत खुश थे। पूरा नगर सजाया जा रहा था। श्रीराम के सभी बालसखा समूह में राजमहल पहुंचे। सभी मित्र श्रीराम से कहते हैं, ‘मित्र, अब तुम राजा बनने वाले हो, हम तुम्हारे मित्र हैं तो अब से हम राजमित्र के रूप में जाने जाएंगे।’
श्रीराम उन सभी मित्रों से बड़ी विनम्रता से बात करते हैं, उनका अभिवादन करते हैं, धन्यवाद देते हैं। श्रीराम के व्यवहार की तारीफ करते हुए सभी मित्र वहां से चले जाते हैं।
सभी मित्र चर्चा कर रहे थे इतना विनम्र और इतना स्नेह निभाने वाला और कौन होगा? राम ही हैं। कुछ लोग कह रहे थे कि ईश्वर हमें जनम-जनम तक अयोध्या में ही जन्म दें। यहीं रहें श्रीराम के साथ।
उस समय देवी सरस्वती वहां पहुंचती हैं और सोचती हैं कि मैंने अयोध्या में एक दासी की बुद्धि फेरी है तो देखूं तो सही अब क्या दृश्य है। पूरा नगर तो आनंद मना रहा था, लेकिन कैकयी महल में काले कपड़े पहनकर बैठी हुई है। उसके मन में जलन की भावना थी। उसके दिमाग में मंथरा के सिखाए हुए शब्द घूम रहे थे।
सरस्वती जी ने महसूस किया कि पूरी अयोध्या में सकारात्मकता और आनंद है और कैकयी के महल में नकारात्मकता ही नकारात्मकता है। कैकयी मंथरा से संचालित हो गई थी। देवी सरस्वती ने सोचा कि कैकयी का बेटा भरत है और भरत जैसे संत की मां भी कुसंगति कर जाए तो जीवन नष्ट हो जाता है। अयोध्या में ऐसा ही हुआ था।
कैकयी मंथरा की बातों में आकर कोप भवन में चली जाती हैं। जिस पर राजा दशरथ उन्हें मनाने पहुंचते हैं तो वह अपने दो वरों की याद उन्हें दिलाती हैं। एक वर में भरत के लिए सिंहासन तो दूसरे वर में राम के लिए 14 वर्ष का बनवास मांगती हैं।
भगवान राम पिता के वचन का पालन करने के लिए वन जाने को तैयार हो जाते हैं। उनके साथ माता सीता व लक्ष्मण भी वन जाने की बात कहते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता वनवासी वेष में वन के लिए प्रस्थान करते हैं।
सीख – कुसंगति कभी न करें। गलत लोगों के मत के अनुसार चलने से हमारी चतुराई खत्म हो जाती है।