हिमशिखर धर्म डेस्क
महाभारत के युद्ध को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है. महाभारत के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, उसे जीवन का असली सूत्र माना गया है. गीता में इन्हीं उपदेशों के माध्यम से व्यक्ति जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति का भी हल ढूंढ़ लेता है.
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए उपदेश में जीवन का सार समाहित है, जिस व्यक्ति ने इन बातों को जान लिया वह जीवन में सफलता का मार्ग प्राप्त कर सकता है.
महाभारत के युद्ध में भी भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश सुनाएं, जिससे युद्ध में पांडवों की जीत हुई. ठीक इसी तरह से जब भी आप खुद को कठिनाई, असफलता, निराशा या असमंजस की स्थिति में पाते हैं तो श्रीकृष्ण के इन उपदेशों को अपने जीवन में जरूर उतारें, इससे आपकी हर परेशानी दूर होगी और सफलता के मार्ग प्रशस्त होंगे. साथ ही इन उपदेशों से व्यक्ति सुखी जीवन का भोग करता है.
इस चीज का कभी नहीं करना चाहिए शोक– मृत्यु अटल सत्य है. भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं, जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है. इसलिए इसे लेकर शोक करना व्यर्थ है.
संदेह करना छोड़ें- कुछ लोगों में बिना वजह संदेह या शक करने की आदत होती है. ऐसे लोग कभी खुश नहीं रह पाते हैं. साथ ही इस आदत से रिश्तों में प्यार और भरोसा दोनों की खत्म हो जाते हैं. इसलिए बिनावजह संहेद करने की आदत का आज ही त्याग कर दें.
ईश्वर को करें याद- ईश्वर आपको हर समस्या से निकाल सकते हैं. इसलिए हमेशा अपने ईश्वर को याद करें. गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति ईश्वर को याद करते हुए अपने प्राण का त्याग करता है, उसे सीधे भगवान का धाम मिलता है.
इन कामों को जरूर करें- अगर आप बुद्धिमान हैं तो इसे नेक काम में खर्च करें. बुद्धिमान होकर चापलूसी करने या किसी प्रकार का षड्यंत्र रचने के बजाय निस्वार्थ भाव से समाज की भलाई करें. इससे आत्मसंतुष्टि होगी और समाज में आपका मान-सम्मान भी बढ़ेगा.
मोह का करें त्याग – गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मोह को छोड़कर सत्य को जानने का प्रयास करें. किसी के प्रति मोह रखने का कोई लाभ नहीं है. खासकर शरीर के प्रति मोह रखने का कोई लाभ नहीं, क्योंकि शरीर नश्वर है और एक दिन ये नष्ट हो जाएगा. इसलिए मोह का त्यागकर सत्य की खोज में निकलें और समाज व धर्म के लिए जो बेहतर हो उसे करें.
तीन नरक हैं वासना, गुस्सा और लालच- व्यक्ति में वासना, गुस्सा और लालच ये तीन प्रकार अवगुण हैं जो सीधे नरक के द्वार पर ले जाते हैं. इसलिए इसका त्याग करें. इन अवगुण का त्याग कर आप सुखी जीवन को व्यतीत कर सकते हैं।
कर्म ही पूजा है- भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि” अर्थात् कर्म ही पूजा है. कर्म ही भक्ति है, इसलिए कर्म को पूरे मन से करना चाहिए. कृष्ण ने अर्जुन को कर्म योगी बनने के उपदेश दिए. उन्होंने अर्जुन से कहा-जो भी कर्म करो, यह सोचकर करो कि वह परमात्मा को समर्पित होता है.
मृत्यु से भय व्यर्थ है – मृत्यु का भय हर व्यक्ति को होता है. भगवान कृष्ण कहते हैं- संसार के निर्माण के बाद से ही जन्म और मृत्यु का चक्र चलता आ रहा है और यह प्रकृति का नियम है. ‘जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है और मृत्यु के बाद जन्म अवश्य होता है, इसलिए मृत्यु से भयमुक्त होकर वर्तमान में जीना चाहिए.’