रामायण और महाभारत में ऐसे अनेक अस्त्रों के बारे में लिखा है, जो महाविनाश कर सकते थे जैसे- ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र आदि। वर्तमान परिस्थिति में देखे तो ये अस्त्र-शस्त्र आज के परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली थे।पुराणों के अनुसार जिन हथियारों को मंत्रों के जरिए दूर से दुश्मन पर हमला किया जाता है वह अस्त्र कहलाते हैं। गरूड़ास्त्र, आग्नेयास्त्र, ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, महादेव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र आदि अस्त्र की श्रेणी में आते हैं। आज हम आपको उन्हीं अस्त्रों के बारे बता रहे हैं…
1. ब्रह्मास्त्र
यह ब्रह्मदेव का अस्त्र माना जाता है। यह सबसे घातक व मारक अस्त्र था, जो दुश्मन को तबाह करके ही छोड़ता था। इसकी काट केवल दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही संभव थी। आज के दौर के हथियारों से तुलना की जाए तो ब्रह्मास्त्र की ताकत कई परमाणु बमों से भी कहीं ज्यादा थी।
यह दिव्यास्त्र परमपिता ब्रह्मा का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है। एक बार इसके चलने पर विपक्षी प्रतिद्वन्दी के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है। यदि एक ब्रह्मास्त्र भी शत्रु के खेमें पर छोड़ा जाए तो ना केवल वह उस खेमे को नष्ट करता है बल्कि उस पूरे क्षेत्र में १२ से भी अधिक वर्षों तक अकाल पड़ता है। और यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तब तो मानो प्रलय ही हो जाता है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और इस प्रकार एक अन्य भूमण्डल और समस्त जीवधारियों की रचना करनी पड़ेगी। महाभारत के युद्ध में दो ब्रह्मास्त्रों के टकराने की स्थिति तब आई जब ऋषि वेदव्यासजी के आश्रम में अश्वत्थामा और अर्जुन ने अपने-अपने ब्रह्मास्त्र चला दिए। तब वेदव्यासजी ने उस टकराव को टाला और अपने-अपने ब्रह्मास्त्रों को लौटा लेने को कहा।
2. पाशुपत अस्त्र
यह भगवान शिव का अस्त्र है। इस बाण में मंत्र से पैदा शक्ति व ऊर्जा एक ही बार में पूरी दुनिया का विनाश कर सकती थी। कुरुक्षेत्र में युद्ध के दौरान यह अस्त्र केवल अर्जुन के पास ही था।महाभारत के युद्ध में अगर अर्जुन ना होते तो शायद इतिहास की ये सबसे भयानक लड़ाई जीतना पांडवों के लिए आसान नहीं होता। भारतीय इतिहास में पाशुपतास्त्र एक अस्त्र का नाम है जो भयानक अत्यन्त विध्वंसक है और जिसके प्रहार से बचना अत्यन्त कठिन। इस अस्त्र को अपने से कम बली या कम योद्धा पर नहीं छोड़ा जाना चाहिये। पशुपातास्त्र सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता है। यह पशुपतिनाथ का अस्त्र है। महाभारत के युद्ध में भी पाशुपतास्त्र अस्त्र का वर्णन मिलता है। अर्जुन ने पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की अराधना की थी।
3. नारायणास्त्र
नारायणास्त्र वैष्णव या विष्णु अस्त्र के नाम से भी जाना जाता है। यह पाशुपत की तरह ही भयंकर अस्त्र था। एक बार इसे चलाने के बाद दूसरा कोई अस्त्र इसे काट नहीं सकता था। इससे बचने का सिर्फ एक उपाय था कि शत्रु हथियार डालकर स्वयं को समर्पित कर दे।
नारायणास्त्र पाशुपत के समान विकराल अस्त्र है। इस नारायण-अस्त्र का कोई प्रतिकार ही नहीं है। यह बाण चलाने पर अखिल विश्व में कोई शक्ति इसका मुक़ाबला नहीं कर सकती। इसका केवल एक ही प्रतिकार है और वह यह है कि शत्रु अस्त्र छोड़कर नम्रतापूर्वक अपने को अर्पित कर दे। कहीं भी हो, यह बाण वहाँ जाकर ही भेद करता है। इस बाण के सामने झुक जाने पर यह अपना प्रभाव नहीं करता।
4. आग्नेय अस्त्र
यह मंत्र शक्ति से तैयार ऐसा बाण था, जो धमाके के साथ आग बरसाता था और अपने लक्ष्य को जलाकर राख कर देता था। इसकी काट पर्जन्य बाण के जरिए संभव थी।
5. पर्जन्य अस्त्र
मंत्र शक्ति से सधे इस बाण से बिना मौसम बादल पैदा होते, भारी बारिश होती और बिजली कड़कती थी।
6. पन्नग अस्त्र
इस बाण को चलाने पर सांप पैदा हो जाते थे। इसकी काट गरुड़ अस्त्र से ही संभव थी। रामायण में भगवान राम व लक्ष्मण भी इसी के रूप नागपाश के प्रभाव से मूर्छित हुए थे।
7. गरुड़ अस्त्र
इस अचूक बाण में मंत्रों के आवाहन से गरुड़ पैदा होते थे, जो खासतौर पर पन्नग अस्त्र या नाग पाश से पैदा सांपों को मार देते थे या उसमें जकड़े व्यक्ति को मुक्त करते थे।
8. वायव्य अस्त्र
मंत्र शक्ति से यह बाण इतनी तेज हवा और तूफान उत्पन्न करता था कि चारों ओर अंधेरा हो जाता था।