सुप्रभातम् : भाग कर जाओगे कहां?

हिमशिखर धर्म डेस्क 

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काका हरिओम्

कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति जीवनभर सत्य से भागता रहता है. लेकिन सत्य उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है. इसलिए समझदारी इसी में है कि जितनी जल्दी हो सके उसे स्वीकार कर लो. ऐसा करते ही आश्चर्य घटित होता है. तब महसूस होता है कि काश ऐसा बहुत पहले कर लिया होता.

सुना है धर्मयुद्ध में परास्त एक पक्ष के सेनापति का पीछा जब उसके शत्रु कर रहे थे,तो एक अजीब घटना घटी.उस पर ईश्वर की कृपा थी. उसकी नीयत साफ थी. लोगों की दुआ उसके साथ थी.

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उसने देखा एक भयंकर विशाल सर्प उसका मार्ग रोके खड़ा था.वह सहम गया. साक्षात् मृत्यु ने मानो उसका रास्ता रोका हुआ था. उसे लगा अब जीना मुश्किल है. आगे और पीछे दोनों ओर मौत थी.  लेकिन कानों में जोरदार शब्द गूंजे, उठा मुझे. आवाज उस ओर से आई थी जिधर कालसर्प फुफकार रहा था. धर्मयोद्धा को कुछ समझ नहीं आया. वह ठिठका. तभी फिर उसे फटकारते हुए किसी ने कहा, उठा मुझे.  इसबार उसने कालसर्प को उठा लिया हाथ में. ऐसा करते ही वह कालसर्प कहीं खो गया. अब उसके हाथ में एक चमत्कारी दंड था. फिर आवाज आई, उतर जा नील नदी में.और वह उस दंड को लिए उफनती नील नदी में उतर गया. हैरान हुआ क्योंकि नील नदी ने उसे पार जाने का मार्ग दे दिया था. शत्रु देखते रह गए.

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परमहंस स्वामी राम कहते हैं कि वह कालसर्प मानो सत्य का कठोर रूप था, जिसे स्वीकार करते ही महानद अर्थात् मुसीबतों ने उसे रास्ता दे दिया और विकार रूपी शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए. इसलिए सत्य को स्वीकारिए, इससे बच कर कहां जाएंगे. भागकर आप अपने जीवन को उलझा लेंगे. हाथ कुछ नहीं आएगा.

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