सुप्रभातम्: कर्मों का फल तो भुगतना पडे़गा!

महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह के बाणों की शय्या पर लेटे होने का प्रसंग बहुत ही प्रसिद्ध है। इस प्रसंग के मुताबिक भीष्म को बाणों की शय्या पर लेटकर अपनी मौत का इंतजार करना पड़ा था। महाभारत युद्ध से जुड़े प्रसंगों में भीष्म पितामह को बाणों की शय्या मिलने के वजह के बारे में भी बताया गया है जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। यह प्रसंग जानना हम सबके के लिए इसलिए भी जरूरी है ताकि हम यह समझ सकें कि हमारे बुरे कर्मों का फल हमें अगले जन्मों तक भी मिलता रहता है। भीष्म पितामह बड़े ही तपस्वी थे। वे पराक्रमी थे। उनका मानना था कि उन्होंने अपने कई जन्मों में कोई बुरा काम नहीं किया है। लेकिन सच यह नहीं था।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

भीष्म पितामह का नाम सुनते ही हमें एक पराक्रमी योद्धा का सशक्त चेहरा याद आता है। एक ऐसा पितृभक्त पुत्र जिसने अपना पूरा जीवन एक प्रतिज्ञा को निभाने में निकाल दिया। एक ऐसे निष्काम कर्मयोगी, जिसने अपने पिता के लिए अपने जीवन, अपनी इच्छाओं और सुखों का त्याग कर दिया था।

भीष्म पितामह की कथा का उल्लेख कुछ इस तरह

गंगापुत्र भीष्म पिछले जन्म में द्यौ नामक वसु थे। एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे। वहां वशिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। एक वसु पत्नी की दृष्टि ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में बंधी नन्दिनी नामक गाय पर पड़ गई। यह गाय समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाली थी। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया तथा कहा कि वह यह गाय अपनी सखियों के लिए चाहती है। आप इसे हर लें। पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय को हर लिया। वसु को उस समय इस बात का ध्यान भी नहीं रहा कि वशिष्ठ ऋषि बड़े तपस्वी हैं और वे हमें श्राप भी दे सकते हैं।

जब महर्षि वशिष्ठ अपने आश्रम आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बातें जान लीं। वसुओं के इस कार्य से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। वसुओं को जब यह बात पता चली तो वे ऋषि वशिष्ठ से क्षमा मांगने आए तब ऋषि ने कहा कि बाकी सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा। यह पृथ्वी पर संतानहीन रहेगा। महाभारत कथा के अनुसार गंगापुत्र भीष्म वह द्यौ नामक वसु थे। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में अपनी इच्छामृत्यु से ही अपने प्राण त्यागे।

इसलिए लेटना पड़ा वाणों की शैय्या पर

भीष्म पितामह रणभूमि में शरशैया पर पड़े थे। हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये।

उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा…. आइये जगन्नाथ।..

आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं,

बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था

जिसका दंड इतना भयावह मिला ?

कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन!

मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ ?

मैंने सब देख लिया …

अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ।

मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण …

और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और

पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। …

एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।

एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला “राजन! मार्ग में एक जीव पड़ा है।

यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।”

भीष्म ने कहा ” एक काम करो।

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उसे किसी लकड़ी में लपेट कर

झाड़ियों में फेंक दो।”

सैनिक ने वैसा ही किया।…

उस जीव को एक बाण की नोक पर में उठाकर  झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी।

जीव उनमें फंस गया।

जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।…

कांटे उसकी देह में गड गए।

खून रिसने लगा जिसे झाड़ियों में मौजूद कीड़ी नगर से चीटियाँ रक्त चूसने लग गई।

धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।…

कुछ दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।

भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ।

आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया।

अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था।

तब ये परिणाम क्यों ?

कृष्ण: तात श्री! हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में …किन्तु क्रिया तो हुई न।

उसके प्राण तो गए ना।…

ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।….

आपका पुण्य इतना प्रबल था कि

101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।….

जिस जीव को लोग जानबूझ कर मार रहे हैं…

उसने जितनी पीड़ा सहन की..

वह उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।

ये बकरे, मुर्गे, भैंसे, गाय, ऊंट आदि वही जीव हैं जो ऐसा वीभत्स कार्य पूर्व जन्म में करके आये हैं।… और इसी कारण पशु बनकर, यातना झेल रहे हैं।

अतः हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।

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कर्मों का फल तो झेलना ही पडे़गा..

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