हिमशिखर खबर ब्यूरो।
रामकृष्ण परमहंस का स्वभाव सभी के साथ निराला रहता था। कुछ लोग तो उनके स्वभाव को समझ लेते थे और कुछ हैरान रह जाते थे। परमहंस जी के पास एक धनी व्यक्ति अक्सर आता था। वह धनी व्यक्ति लोगों के साथ बात करते समय अपशब्दों का उपयोग बहुत ज्यादा करता था। वह पैसे वाला था तो उसके सामने कोई कुछ बोलता नहीं था।
परमहंस जी के यहां सत्संग में आने वाले लोग उस धनी व्यक्ति को देखते और आपस में बात करते थे कि ये व्यक्ति यहां आने के बाद भी कुछ सीखता नहीं है, बाहर जाकर लोगों से गाली-गलौच करते हैं। इस व्यक्ति की बोली बहुत कड़वी है।
कुछ लोगों ने साहस करते हुए परमहंस जी से कहा, ‘ये जो सज्जन आपके पास आते हैं, आपके प्रति श्रद्धा भी रखते हैं, लेकिन ये बहुत कड़वा बोलते हैं। बात-बात पर अपशब्द कहते हैं। आप कुछ करिए।’
परमहंस जी ने एक दिन उस व्यक्ति को अपने पास बैठाया और कहा, ‘इस प्रसाद को पी लो।’
जैसे ही उस व्यक्ति ने वह पेय पिया उसका मुंह बिगड़ गया, क्योंकि वह बहुत कड़वा था। उस व्यक्ति ने कहा, ‘परमहंस, ये आपने मुझे क्या पीने को दिया है, ये तो बहुत ही ज्यादा कड़वा है।’
परमहंस जी ने कहा, ‘अच्छा एक बात बताओ, तुम्हारी जीभ को ये कैसे मालूम हुआ कि ये कड़वा है?’
उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘जीभ को तो कड़वे, मीठे, खारे का स्वाद आता ही है। इसलिए कड़वा था तो मुझे मालूम होना ही था।’
परमहंस जी ने मुस्कान के साथ कहा, ‘तुम्हारी जीभ ये जानती है कि जो तुमने पिया है, वह कड़वा है तो क्या तुम्हारी जीभ ये नहीं जानती कि जो शब्द तुम बाहर निकालते हो, वह भी कड़वे हो सकते हैं। ये शब्द तुम्हारी जीभ को भी गंदा करते हैं, जैसे अभी तुम्हारा मुंह कड़वा हो गया है।’
सीख – हम जब भी कोई बात कहते हैं तो वह संतुलित हो, मीठी हो, दूसरों के लिए कर्णप्रिय हो। अपशब्दों का उपयोग अच्छे लोग नहीं करते हैं।
ज़बान के रस का हमारे जीवन में बहुत महत्व है।