संवेदनशील व्यक्ति दूसरों के दुख को अच्छी तरह से समझ लेता है। जब हम किसी अन्य का दुख अपनी आत्मा से देखते हैं, तब जाकर कहीं संवेदना का जन्म होता है। बड़े भाई रावण को मरा देखकर विभीषण दुखी हो जाते हैं। राम यह दृश्य देख रहे थे। उन्होंने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा- जाओ, विभीषण को धैर्य बंधवाओ। तब लक्ष्मण विभीषण को समझाते हुए उन्हें श्रीराम के पास ले आते हैं।
यहां तुलसीदासजी ने लिखा- ‘कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका।’ राम ने बड़ी कृपा भरी दृष्टि से विभीषण को देखा और कहा- अब सारे शोक त्याग कर रावण की अंतेष्टि क्रिया कीजिए।
रावण की मृत्यु पर विभीषण दुखी तो थे, लेकिन उन्होंने यह भी कह दिया था कि मैं अंतिम क्रिया नहीं करूंगा। मतलब रावण को लेकर कहीं न कहीं उनके मन में विरोध था।
तब राम ने समझाया था- विभीषण, जो व्यक्ति चला जाता है, हो सके तो उसके गुण याद रखो, दुर्गुणों को भुला दो। मृतक की आलोचना नहीं करना चाहिए।
विभीषण का दुख श्रीराम ने बहुत अच्छे-से समझा और उनकी दुख की जो प्रतिक्रिया थी, उसे ठीक करते हुए हमें भी समझाया कि जीवन में जब दुख आए तो उसे दूसरे के प्रति रोष बनाकर व्यक्त न किया जाए।