पंडित हर्षमणि बहुगुणा
“कोई आवश्यक नहीं कि आज हम बहुत असहाय हैं तो कल भी ऐसे ही रहेंगे, कोई आवश्यक नहीं कि आज हम बहुत बलवान हैं तो कल भी ऐसे ही रहेंगे। समय बदलेगा, तराजू के पलड़े कब किस ओर झुकते हैं, यह समय पर निर्भर है। अतः अपशब्दों से किसी का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। सबका सम्मान, सबकी उन्नति का मूल मंत्र हो सकता है। विचारणीय है — इस कैलेण्डर वर्ष के अन्तिम दिन, अन्तिम रविवार को, विनम्र श्रद्धांजलि।
मादा बिच्छू की मृत्यु बहुत ही दु:खदायी रूप में होती है। मादा बिच्छू जब बच्चों को जन्म देती है तब, ये सभी बच्चे जन्म लेते ही अपनी मां की पीठ पर बैठ जाते हैं और अपनी भूख मिटाने हेतु तुरंत ही अपनी मां के शरीर को ही खाना प्रारम्भ कर देते हैं, और तब तक खाते हैं जब तक कि उसकी केवल अस्थियां शेष ना रह जाए। वो तड़पती है, कराहती है, लेकिन ये पीछा नहीं छोड़ते।
और ये उसे पलभर में नहीं मार देते बल्कि कई दिनों तक यह मौत से बदतर असहनीय पीड़ा को झेलती हुई दम तोड़ती है। मादा बिच्छू की मौत होने के पश्चात् ही ये सभी उसकी पीठ से नीचे उतरते हैं। लाख चौरासी के कुचक्र में ऐसी असंख्य योनियां हैं, जिनकी स्थितियां अज्ञात हैं, कदाचित् इसीलिए भवसागर को अगम और अपार कहा गया है। सन्तमत के मुताबिक यह भी मनुष्य योनि में किए गये कर्मों का ही भुगतान है।
अर्थात्, इन्सान इस मनुष्य जीवन में जो कर्म करेगा, नाना प्रकार की असंख्य योनियों में इन कर्मों के आधार से ही उसे दुःख सुख मिलते रहेंगे। यह तय है! और सत्य है।
मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिला है। ये जो गलियों में आवारा जानवर घूम रहे हैं न! इन्हें भी कभी मनुष्य जन्म मिला था, इनमें से कोई डॉक्टर था, कोई इंजीनियर, कोई वकील, कोई कुछ और? इनके गुरु भी इन्हें नाम का भजन करने को कहते थे तो हँस कर जवाब देते थे कि अभी हमारे पास समय नहीं है। वो मनुष्य जन्म हार गए, भगवान का भजन व धन्यवाद नहीं किया, पशु योनि में आ गए। अब देखो समय ही समय है, बेचारे गली – गली में आवारा घूमते हैं, कोई धुत्कारता है, कोई फटकारता है, कोई शायद दया भी करता है। कर्म बहुत रूला डालते हैं, किसी को नहीं छोड़ते अब नहीं समझेंगे तो कब समझेंगे…? हरिनाम का भजन कर्मफलों को भी धो डालता है। हमें चाहिए कि हरिनाम का जप जरूर करें।
“ईश्वर बहुत दयालु हैं, सबके पालन की व्यवस्था कर रखी है। मनुष्य से केवल यह चाहते हैं कि वह उनका स्मरण करता रहे। सारी दुनिया स्वार्थी है। ईश्वर के नाम लेने में भी स्वार्थ छिपा है, हमारा संकल्प स्वार्थ पूर्ण है। पर जाने अनजाने में भी यदि भगवान के नाम का स्मरण किया जाता है तो वह लाभ कर ही होता है। अतः सदैव भगवान के नाम का स्मरण करें और खुश रहें।
‘स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, ईश्वर सबकी रक्षा करेगा ‘
हारिए न हिम्मत बिसारिए न राम।
नमस्ते भगवन् विष्णो लोकानां प्रभवाप्यय ।
त्वं हि कर्ता हृषिकेश संहर्ता चापराजित: ।।