पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज हरितालिका तीज है, आइए जानते हैं कि हरतालिका तीज मनाने का क्या तरीका है, कब और कैसे मनाई जाती है यह तिथि, इससे क्या लाभ मिल सकता है-
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘हरितालिका’ का व्रत किया जाता है। इसमें चतुर्थी विद्धा तिथि ग्राह्य होती है। क्योंकि द्वितीया पितामह की व चतुर्थी पुत्र की तिथि है, इसलिए द्वितीया का निषेध है, चतुर्थी का योग श्रेष्ठ है। अतः चतुर्थी युक्त तिथि को ग्रहण करना चाहिए।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत आज 09 सितम्बर, गुरुवार को है। विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
विधि
इस दिन महिलाएं निर्जल (बिना कुछ खाए-पीए) रहकर व्रत करती हैं। फलाहार सेवन की बात तो दूर, निष्ठावान स्त्रियां जल तक ग्रहण नहीं करती। इस व्रत में बालू रेत से भगवान शंकर व माता पार्वती का मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है। घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाया जाता है।
एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सखी की आकृति (प्रतिमा) बनायी जाती है। प्रतिमाएं बनाते समय भगवान का स्मरण करें। देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन करें। व्रत का पूजन रात भर चलता है। महिलाएं जागरण करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है।
भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र कहे जाते हैं –
*ॐ उमायै नम:, ॐ पार्वत्यै नम:, ॐ जगद्धात्र्यै नम:, ॐ जगत्प्रतिष्ठायै नम:, ॐ शांतिरूपिण्यै नम:, ॐ शिवायै नम:*।
*भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करते हैं -*
*ॐ हराय नम:, ॐ महेश्वराय नम:, ॐ शम्भवे नम:, ॐ शूलपाणये नम:, ॐ पिनाकवृषये नम:, ॐ शिवाय नम:, ॐ पशुपतये नम:, ॐ महादेवाय नम:*
पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न ग्रहण करती हैं।
ससुराल में कोई तकलीफ हो तो इस व्रत को करने से वह दूर होती है* ।
*किसी सुहागन बहन को ससुराल में कोई तकलीफ हो तो शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखें … उपवास का अर्थ एक बार बिना नमक का भोजन करके उपवास रखना। भोजन में दाल चावल सब्जी रोटी नहीं खाएं , दूध रोटी खा लें .. शुक्ल पक्ष की तृतीया को.. ऐसा उपवास रखें … बिना नमक का भोजन (दूध रोटी) , एक बार खाएं बस…… अगर किसी बहन से वो भी नहीं हो सकता तो केवल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया, वैशाख शुक्ल तृतीया और भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया जरुर ऐसी तीन तृतीया का उपवास जरुर करें , बिना नमक के … अवश्य लाभ होगा…
ऐसा व्रत वशिष्ठ जी की पत्नी अरुंधती ने किया था…. ऐसा आहार, बिना नमक का भोजन, वशिष्ठ और अरुंधती का वैवाहिक जीवन इतना सुंदर था कि आज भी सप्त ऋषियों में से वशिष्ठ जी का जो तारा होता है , उनके साथ अरुंधती का तारा भी होता है… आज भी आकाश में रात को हम उनका दर्शन करते हैं।इस व्रत को सर्व प्रथम गिरिराज नन्दिनी उमा ने किया , जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शंकर पति रूप में प्राप्त हुए।…
शास्त्रों के अनुसार शादी के समय उनका दर्शन करते हैं जो जानकार पंडित होता है वो बोलता है कि शादी के समय वर-वधु को अरुंधती का तारा दिखाया जाता श्रेयस्कर है और प्रार्थना करते हैं कि , “जैसा वशिष्ठ जी और अरुंधती का साथ रहा ऐसा हम दोनों पति पत्नी का साथ रहेगा”, ऐसा नियम है।
चन्द्रमा की पत्नी ने इस व्रत के द्वारा चन्द्रमा की २७ पत्नियों में से प्रधान हुई चन्द्रमा की पत्नी ने तृतीया के व्रत के द्वारा ही वह स्थान प्राप्त किया था । और अगर किसी सुहागन बहन को कोई तकलीफ है तो यह व्रत करें ….उस दिन गाय को चंदन से तिलक करें, कुम -कुम का तिलक ख़ुद को भी लगाएं उत्तर दिशा में मुख करके, गाय को भी रोटी गुड़ खिलाना चाहिए।