पंडित उदय शंकर भट्ट
आज (28 जुलाई) को सावन महीने की अमावस्या है। ये प्रकृति का आभार मानने का और प्रकृति के लिए कुछ अच्छा करने का दिन है, इसे हरियाली अमावस्या कहते हैं। इस तिथि पर अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। इस कारण हरियाली अमावस्या का महत्व और अधिक बढ़ गया है।
हरियाली अमावस्या का धार्मिक महत्व
श्रावण मास की अमावस्या को पितृ श्राद्ध, दान, हवन और देव पूजा एवं वृक्षारोपण आदि शुभ कार्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याएं इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करती है। इसके अलावा सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्पदोष, पितृदोष और शनि का प्रकोप है वे हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक, पंचामृत या रुद्राभिषेक करें तो उन्हें लाभ होगा। इस दिन शाम के समय नदी के किनारे या मंदिर में दीप दान करने का भी विधान है। बेसहारा गाय को गुड़ रोटी खिलानी चाहिए।
शास्त्रों में इस दिन वृक्षारोपण का विधान बताया गया है। भविष्य पुराण में उल्लेख है कि जिसको संतान नहीं है उसके लिए वृक्ष ही संतान है। वृक्ष लगाने से वृक्ष में विद्धमान देवी-देवता पूजा करने वालों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। दिन-रात ऑक्सीजन देने वाले पीपल में ब्रह्मा, विष्णु व शिव का वास होता है। पदम् पुराण में कहा गया है कि एक पीपल का वृक्ष लगाने से मनुष्य को सैकड़ों यज्ञ करने से भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। पीपल के दर्शन से पापों का नाश, स्पर्श से लक्ष्मी की प्राप्ति एवं उसकी प्रदिक्षणा करने से आयु बढ़ती है। गणेश और शिव को प्रिय शमी का वृक्ष लगाने से शरीर आरोग्य बनता है। श्री हरि का प्रिय वृक्ष आंवला लगाने से श्री की प्राप्ति होती है। शिवजी की कृपा पाने के लिए बिल्वपत्र अवश्य लगाना चाहिए।अशोक लगाने से जीवन के समस्त शोक दूर होते हैं एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए अर्जुन,नारियल,बरगद(वट) का वृक्ष लगाएं।
हरियाली अमावस्या का वैज्ञानिक महत्व
हरियाली अमावस्या पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व और धरती को हरी-भरी बनाने का संदेश देती है। पेड़-पौधे जीवंत शक्ति से भरपूर प्रकृति के ऐसे अनुपम उपहार है जो सभी को प्राणवायु ऑक्सीजन तो देते ही हैं, पर्यावरण को भी शुद्ध और संतुलित रखते हैं।आज जब मौसम पूरे विश्व में बदल रहा है तब यह अमावस्या महज़ एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि पृथ्वी को हरी-भरी बनाने का संकल्प पर्व भी है।