पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज हिन्दी दिवस है, हिन्दी दिवस मनाने का अभिप्राय यह नहीं कि लम्बे – चौड़े भाषण दिए जाएं और मन में हिन्दी के प्रति जागरूकता ही न हो। (या हिन्दी के प्रति नफरत हो) ऐसा प्राय: होता है, यदि पार्टी का चस्मा उतार कर देखा जाए तो विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए किस – किस व्यक्ति ने हिन्दी बोलने का प्रयास किया और ऐसा करके किसका मान बढ़ाया? विचारणीय है।
आज एक ही उदाहरण काफी है “जब प्रसिद्ध गांधीवादी नेता और कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष डाॅ० पट्टाभि सीतारमैया अपने सभी पत्रों पर हिन्दी में ही पता लिखते थे। इस कारण दक्षिणी भारत के डाकघर वालों को बहुत असुविधा होती थी, अतः उन लोगों ने डॉ० साहब को सन्देश भेजा कि आप अंग्रेजी में पता लिखा करें जिससे डाक बांटने में सुविधा हो। तो जानते हैं कि डॉ० सीतारमैया ने उनसे क्या कहा!
उन्होंने कहा कि- भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, अतः मैं अपने पत्र व्यवहार में उसी का प्रयोग करूंगा। डाक घर वालों ने उन्हें धमकी भी दी कि – ” यदि आप ने हमारा कहना नहीं माना तो हम आपके पत्रों को ‘डेड लेटर’ कार्यालय को भेज देंगे” । परन्तु डॉ० सीतारमैया पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ, दोनों के बीच काफी समय तक शीत युद्ध जारी रहा पर अन्त में डाकघर वाले क्षुक ही गये और मजबूरन डाकघर वालों ने मछली पट्टणम् के डाकघर में एक हिन्दी जानने वाले व्यक्ति को नियुक्त करना पड़ा। इस तरह आखिर कार जीत राष्ट्रभाषा की हुई।
‘सच्चाई का मार्ग कठिन अवश्य है पर तब तक जब तक उस मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों की संख्या कम है , आप सत्य के मार्ग पर चलते रहिए एक न एक दिन आपके साथ चलने वालोें की संख्या अधिक जरूर होगी। विरोध हमेशा उसका होता है जिसके पास कुछ है। अपने राष्ट्र के प्रति कृतज्ञ रहिए, हमारे राष्ट्र को पुनः विश्वगुरु का पद अवश्य मिलेगा, यह हमारी दृढ़ता पर भी निर्भर करता है।’
हिन्दी एक महकता गुलशन, संस्कृत है इन सबका मूलमूल है