हिमशिखर धर्म डेस्क
होली से पहले इस साल होलाष्टक 10 मार्च से शुरू हो रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करना वर्जित होता है क्योंकि होली जलने से पहले के 8 दिन पौराणिक मान्यताओं में अशुभ माने जाते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू होता है, जो फाल्गुन पूर्णिमा तक रहता है। जब फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन होता है तो इसी के साथ होलाष्टक भी खत्म हो जाता है और फिर अगले दिन होली खेली जाती है।
होलाष्टक में नहीं होते शुभ काम
होलाष्टक के साथ मांगलिक काम नहीं किए जा सकेंगे। होलिका अष्टक शुरू होने के साथ ही शादियां, गृह प्रवेश, देव प्राण प्रतिष्ठा, मुंडन, नए बिजनेस की शुरुआत जैसे शुभ मांगलिक कामों पर रोक लग जाएगी। होलाष्टक के दौरान अंतिम संस्कार को छोड़ सभी मांगलिक संस्कारों को करने की मनाही होती है। इन दिनों में नया घर बनाने की शुरुआत भी नहीं की जाती।
होलाष्टक से शुरू होलिका दहन की तैयारियां
फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलिका अष्टक शुरू हो जाते हैं। इसी दिन से एक पेड़ की डाली काटकर उसमें रंग बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांधे जाते हैं। फिर उसको जमीन में गाड़ दिया जाता है। फिर इसके चारों तरफ सूखी लकड़ी और गाय के गोबर से बने उपलों को इकट्ठा करते हैं।
होलिका दहन के दिन भद्रा रहित शुभ समय में नृसिंह भगवान एवं भक्त प्रहलाद के पूजन के बाद अग्नि पूजन करके होलिका दहन किया जाएगा।
क्या करें होलाष्टक के दिनों में
होलाष्टक का समय भक्ति भाव के लिए बहुत अच्छा होता है। इन दिनों में सुबह देर तक न सोएं। सुबह जल्दी उठें और नहाने के बाद उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाएं। इससे देवी देवता का आशीर्वाद मिलेगा। इन आठ दिनों में भगवान विष्णु की पूजा जरूर करनी चाहिए। प्रह्ललाद ने भी इन दिनों भगवान विष्णु की पूजा और उनके मंत्रों का जाप की था। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र या दुर्गासप्तशती का पाठ भी किया जा सकता है। ऐसा करने से रोग, शोक और दोष खत्म होते हैं।