पं. हर्षमणि बहुगुणा
होली का त्योहार बुराईयों पर अच्छाईयों की जीत का प्रतीक है। होली पर्व की पौराणिक कथा हिरयण्यकश्यप, होलिका और भक्त प्रह्लाद के त्रिकोणी द्वंद्व एवं संघर्ष की पराकाष्ठा को स्पर्श करती है, वह संभवतः अपने किस्म की अनूठी मिशाल है। कारण यह है कि प्रह्लाद ही सबसे पहला क्रांतिकारी था जिसने अपने पिता हिरण्यकश्यप तथा व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया और अपने मिशन में सफल भी हुआ। विष्णुरूपी परमात्मा की भक्ति करने से उस पर भगवान विष्णु की कृपा हुई। प्रह्लाद के पास सत्य, आस्था और प्रेम तीनों चीजें थीं। इसलिए वह आग के अंदर होते हुए भी बच गया और कभी न जलने वाली होलिका जलकर राख हो गई।
हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा से मिला था वरदान
दैत्यों के प्रमुख कश्यप और उनकी पत्नी दिति के पुत्र थे हिरण्यकश्यप। उसने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया था। वहीं वरदान प्राप्त किया था कि वह न किसी मनुष्य द्वारा जा सकेगा, न पशु द्वारा, नहीं दिन में मारा जा सकेगा और न रात्रि में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से न किसी शस्त्र से वह मरेगा। इस वरदान ने हिरण्यकश्यप् को अहंकारी बना दिया। वह खुद को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य तक छीन लिया और तीनों लोकों को परेशान करने लगा। वह खुद को भगवान समझने लगा था और चाहता था कि सब लोग उसकी पूजा करें।
राज्य में विष्णु पूजा को वर्जित कर दिया
हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया था। लेकिन इस दैत्यराज के घर जन्म हुआ प्रह्लाद का। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उनकी पूजा करता था। प्रह्लाद की नारायण भक्ति से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने उसे मरवाने के कई प्रयास किए, फिर भी वह बच गया। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पर्वत से नीचे फिंकवा दिया। लेकिन भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
होलिका के पास थी चादर
प्रह्लाद की भक्ति से परेशान हिरण्यकश्यप अपनेे बेटे को मारने के लिए नई योजना पर विचार कर रहा था। जिस पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने की योजना में अपनी सहायता देने की बात कही। होलिका ने अपने भाई हिरण्यकश्यप से कहा कि उसके पास एक चादर है, जिसे पहनने पर वह आग के बीच बैठ सकती है। उसे वरदान मिला था चादर पर आग का कोई असर नहीं होगा। जिस पर होलिका ने हिरण्यकश्यप से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्जवलित आग में बैठ जाएगी। होलिका वही चादर ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। भगवान की माया का असर हुआ कि हवा चली और चादर होलिका के उपर से उड़कर प्रह्लाद पर आ गई। इस तरह प्रह्लाद का कुछ भी नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई।
नरसिंह अवतार ने किया वध
आखिरी में हिरण्यकश्यप ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल किया और उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को बचाने आ गए। वे खंभे में नरसिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेश द्वार की चैखट पर लेकर आए। जो न घर के बाहर था न अंदर, जब न दिन था और न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु, जो न नर था न पशु। नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज नाखुनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र थे, उसे मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्ट कर्मों के कारण मारा गया।
बुराई पर हमेशा सच्चाई की होती है जीत
यह पौराणिक कथा हमारे सम्मुख दो मार्ग दिखाती है-कुमार्ग और सद्मार्ग। कुमार्ग सांप्रदायिकता, पीड़ा, बर्बरता और विनाश का रास्ता है। जबकि सद्मार्ग अहिंसा, शांति, सद्भावना, भाईचारा का रास्ता है। सदियों से अच्छाई को स्थापित करने के लिए, बुराई और दुःख को सुख में बदलने के लिए सनातन धर्म में प्रयास किए जाते रहे हैं। इन प्रयासों में जब कभी सफलता मिलती है, तो उसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन अंधकार और बुराई को जला डालने का सामाजिक यज्ञ है। पूरे समाज की ओर से हर साल किए जाने वाला सामूहिक हवन। होली संदेश लेकर आती है कि जीवन में आनंद, प्रेम, संतोष एवं दिव्यता होनी चाहिए। जब हम इन सबका अनुभव करते हैं, तो हमारे अंतःकरण में उत्सव का भाव पैदा होता है।