कश्मीर में एक मौलवी थांग-टा के संरक्षण में आगे आया

जम्मू कश्मीर

Uttarakhand

मोहम्मद इकबाल को उस समय असामान्य सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर में युवाओं को मनोरंजक खेल थांग-टा की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया।

इकबाल ने कहा कि “बीस साल पहले मैं एक निजी प्रशिक्षक था और लड़कों एवं लड़कियों को मुफ्त कक्षाएं दे रहा था। इकबाल अब राज्य के एक सम्मानित कोच हैं। उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स में भाग लिया था।

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केआईजीयू-2021 (बाएं तरफ) में जम्मू और कश्मीर थांग-टा टीम के कोच मोहम्मद इकबाल और जम्मू-कश्मीर थांग-टा एसोसिएशन के कोच और महासचिव अयाज अहमद भट

इकबाल ने बताया कि स्थानीय लोगों ने मेरी कक्षाओं में लड़कियों के शामिल होने पर आपत्ति जताई थी। उनमें से कई लोगों ने बहुत ही आक्रामक रवैया अपनाया और हमारे प्रशिक्षण सत्रों में बाधा पैदा करते रहे।

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श्रीनगर से थांग-ता एथलीट मुनाज़ा बिलाल

इकबाल ने बताया कि जहां पर वह रहते थे, बाद में वहां की एक स्थानीय मस्जिद के प्रमुख ने उनका बचाव किया। उन्होंने बताया कि मौलवी और कई स्कूल के प्रधानाचार्यों ने मेरे चरित्र की पुष्टि की तथा आंदोलनकारियों को आश्वासन दिया कि मैं बच्चों की अच्छी देखभाल करूंगा, और आज मैं यहां हूं।

इससे मुझे काफ़ी मदद मिली तथा लड़कियों को यह खेल पसंद आया और प्रत्येक ने विरोध के बावजूद इसमें बने रहने के लिए दृढ़ संकल्प किया।

वर्षों से आतंकवाद की छाया में मोहम्मद इकबाल ने हजारों बच्चों को थांग-टा खेलने की ओर आकर्षित किया है और उन्हें मुख्यधारा में बने रहने की सख्त उम्मीद है।

इकबाल ने गर्व से बताया कि ‘‘आज उनमें से कई युवक और युवतियां स्थानीय कोच हैं। लेकिन उस समय, कुछ लोगों को चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों यहां तक कि कोरिया से लेकर दुबई और ईरान तक की यात्रा करनी पड़ी, जिसने दूसरों को भी प्रेरित किया।’’

यह समझना मुश्किल है कि थांग-टा मणिपुर के पूर्वोत्तर राज्य में अपनी उत्पत्ति के साथ भारत के सबसे उत्तरी छोर जम्मू-कश्मीर तक पहुंचने के लिए मैदानी इलाकों, पहाड़ियों और घाटियों को किस तरह से पार किया है।

इकबाल ने कहा कि ‘‘थांग-टा एक घरेलू खेल है। यह एक भारतीय मार्शल आर्ट है और हमने अभी इस खेल को अपनाया है। मैं तब सिर्फ एक स्कूली छात्र था जब इसकी ओर आकर्षित हो गया था।’’

बहुत से लोग मानते हैं कि उस समय के आसपास एक स्थानीय टूर्नामेंट थांग-टा के प्रसार के लिए मुख्य कार्यक्रम था। ‘‘यह हम में से कुछ को तकनीकी को समझने में मदद करने के लिए आयोजित किया गया था और मैंने जल्द ही 1999 में राष्ट्रीय खेलों के लिए खुद को मणिपुर में पाया।’’

मैं कुछ साल बाद समझदार और बड़ा बना था, जब एक कोच बन गया, फिर मुझे मणिपुरी थांग-टा फेडरेशन से बुनियादी और उन्नत प्रशिक्षण दोनों सीखने का निमंत्रण मिला।

आज श्रीनगर शहर में 20 से अधिक थांग-टा क्लब खुल गए हैं। उनके कई पूर्व शिष्य वहां युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर थांग-टा एसोसिएशन के महासचिव अयाज अहमद भट कहते हैं कि यह अब एक खेल परंपरा बन गई है और परिवार अपने बच्चों को प्रशिक्षण के लिए हमारे पास भेजकर खुश हैं।

इकबाल ने गर्व व्यक्त करते हुआ कहा कि ‘‘अब जब लड़कियां आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट सीखना चाहती हैं, तो कई हमारी कक्षाओं में शामिल हो जाती हैं।’’

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