बोधकथा : एक लड़की की प्रिय गुड़िया कहीं खोने पर काफका ने किस तरह उसका मन रखा,

Uttarakhand

हिम शिखर ब्यूरो

फ्रांत्स काफ़्का जर्मनी के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे। अपने 41 साल के जीवन काल में उन्होंने अनेक कालजयी रचनाएं लिखीं। जीवन के अंतिम दौर में व्यक्तिगत अनुभव पर उन्होंने कहानी लिखी ‘फ्रांत्स काफ़्का और एक गुड़िया की कहानी’, जो एक छोटी लड़की के लिए लिखे पत्रों पर आधारित थी।

बर्लिन के स्टेगलिट्ज़ पार्क में टहलते हुए एक दिन उन्हें एक रोती हुई बच्ची मिली। काफ़्का ने उससे रोने का कारण पूछा, तो लड़की ने बताया कि वह जिस गुड़िया से खेल रही थी, वह इसी पार्क में कहीं खो गई है। काफ़्का ने उस बच्ची को उसकी गुड़िया ढूंढ लाने का आश्वासन दिया जिससे वह बच्ची चुप हो गई।

काफ़्का ने गुड़िया ढूंढने के लिए समय मांगा और फिर दूसरे दिन गुड़िया लाने का वादा करके वहां से चले गए, पर गुड़िया ना तो काफ़्का को मिली और ना ही उस लड़की को। काफ़्का ने गुड़िया की तरफ़ से एक काल्पनिक पत्र उस लड़की को लिखा और जब वह लड़की पार्क में गुड़िया पाने की आशा में आई तो काफ़्का ने वह पत्र उस लड़की को पढ़ कर सुनाया। पत्र इस प्रकार था ‘कृपया रोना मत’ मैं दुनिया घूमने के लिए निकली हूं, मैं समय-समय पर अपनी यात्रा के बारे में तुम्हे लिखती रहूंगी, बस तुम रोना मत।’

अब काफ़्का नियमित रूप से उस खोई हुई गुड़िया की तरफ़ से काल्पनिक पत्र लिखने लगे और लगभग रोज़ ही उस लड़की को पढ़कर सुनाते जो कि यात्रा का काल्पनिक वर्णन हुआ करता था। काफ़्का के इस काल्पनिक लेकिन रोचक वर्णन ने उस लड़की को फिर रोने नहीं दिया। वह ख़ुशी-ख़ुशी अपनी गुड़िया की घुमक्कड़ी के किस्से सुनने लगी। वह अब ख़ुश रहने लगी।

एक दिन जब काफ़ी कहानियां हो गईं तो फ्रांत्स काफ़्का ने एक दूसरी गुड़िया उस लड़की को लाकर दी। ज़ाहिर है, वह गुड़िया बदली हुई थी। उस लड़की को अपनी खोई हुई पुरानी गुड़िया जैसी नहीं लगी, तो वह काफ़्का की ओर देखने लगी। काफ़्का अनजान बनते हुए गुड़िया में चिपकी एक चिट को निकालकर पढ़ने लगे। उसमें लिखा था ‘यह मैं ही हूं’ तुम्हारी वाली गुड़िया जो पार्क में खो गई थी। दुनिया भर की लंबी यात्रा की वजह से मैं थोड़ी बदल गई हूं और काफ़ी थक भी गई हूं। लड़की को इस गुड़िया और काफ़्का पर विश्वास हो गया वह गुड़िया लेकर घर चली गई।

वर्षों बाद जब वह लड़की बड़ी हो गई, तो एक दिन वह अपनी अलमारी में कुछ ढूंढ रही थी तो उसका ध्यान उसी गुड़िया पर गया, जो काफ़्का ने उसे दी थी। बचपन की बातें याद कर वह हंसने लगी। उसे सब समझ आ चुका था कि काफ़्का ने कैसे उसका मन रखा। उसे उस गुड़िया पर फिर प्यार आने लगा। वह उसे बड़े ग़ौर से देखने लगी तो सहसा उसकी नज़र गुड़िया की फ्रॉक की आस्तीन में छुपे एक छोटे से पत्र पर गई। उसने बड़ी व्याकुलता से वह पत्र निकाला और पढ़ने लगी। पत्र में संक्षेप में यह लिखा था ‘हर वह चीज़ जिससे तुम प्यार करती हो, कभी न कभी तुमसे खो जाएगी, पर अन्त में जो लौट कर आएगी और जो तुम्हारे पास होगी, वही तुम्हारे लिए सच्चे रूप में बनी होगी। रूप भले ही भिन्न होगा, पर प्यार एकदम ख़ालिस होगा।’

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