अपनों की मदद करना, अपने लोगों के लिए जीवन जीना अच्छी बात है। कुछ लोग तो अपना पूरा जीवन घर-परिवार के लिए समर्पित कर देते हैं। पुराने समय में एक डाकू था। वह अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था। डाकू पढ़ा-लिखा नहीं था। परिवार वालों का पेट भरना था तो वह लूट का काम करने लगा।
लूट में कभी-कभी बहुत धन मिलता, कभी कम धन आता। डाकू सारा धन घर वालों को दे देता था। घर वालों को धन मिलता तो वे पूछते भी नहीं थे कि धन कहां से आता है? परिवार में सभी बहुत सुखी थे।
एक दिन संयोग से नारद मुनि डाकू को मिल गए। नारद मुनि ने डाकू से कहा, ‘घर वालों के लिए तुम ये लूटमार कर रहे हो, हिंसा करते हो, कभी तुमने उनसे पूछा भी है कि जब इस गलत काम का दंड ऊपर वाला तुमको देगा तो उस दंड में परिवार के लोग हिस्सेदारी करेंगे या नहीं?’
डाकू बोला, ‘वे क्यों नहीं करेंगे? जब हम मिल-बांटकर सब कुछ खाते-पीते हैं तो वे लोग मेरे साथ रहेंगे।’
नारद मुनि बड़े धैर्यवान थे, उन्होंने कहा, ‘एक बार परिवार के लोगों से पूछ तो लो।’
डाकू ने जब घर वालों से इस बारे में पूछा तो किसी भी सदस्य ने साथ देने के लिए हां नहीं कहा। परिवार के लोग बोले, ‘तुम हमें धन देते हो, ये अच्छी बात है, लेकिन तुम ये धन गलत तरीके से लाते हो तो ये तुम जानो। जब इस गलती का दंड तुम्हें मिलेगा तो हम इसमें तुम्हारी कोई सहायता नहीं करेंगे।
ये बातें सुनकर डाकू की आंखें खुल गईं।
सीख – इस किस्से से हमें दो बातें समझनी चाहिए। पहली, जब कोई विद्वान व्यक्ति सलाह दे तो उसे मान लेना चाहिए। जैसा यहां डाकू ने नारद मुनि की सलाह मान ली। दूसरी बात, कभी भी अपने घर-परिवार के लिए भी गलत काम न करें। गलत काम का परिणाम बुरा ही होता है।