हिमशिखर धर्म डेस्क
एक बड़े संत के पास जो भी व्यक्ति जाता था, वह उनसे इतना प्रभावित हो जाता कि वह निर्णय ले लेता, अब इनकी सेवा में ही रहना है। एक बार ऐसा ही हुआ। एक प्रतिष्ठित व्यक्ति जब संत के पास गया तो वह उनकी बातें सुनकर उनकी सेवा में ही रहने लगा। इसके बाद उस व्यक्ति के घर में हंगामा खड़ा हो गया।
प्रतिष्ठित व्यक्ति का एक रिश्तेदार इस बात से गुस्सा हो गया और वह संत के पास पहुंच गया। उस समय संत उपदेश दे रहे थे, वे एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। बहुत शांत वातावरण था। गुस्से में व्यक्ति ने चिल्लाना शुरू कर दिया और वह संत को अपशब्द कहने लगा।
जो लोग संत के उपदेश सुनने के लिए बैठे हुए थे, वे बेचैन हो गए कि इससे अधिक गालियां अब हम नहीं सुन सकते और संत सुने चले जा रहे थे। गाली देने वाला व्यक्ति भी थोड़ी देर बाद थक गया। संत ने उससे पूछा, ‘आपको जो कहना था, वह आप कह चुके?’
व्यक्ति ने कहा, ‘हां, मैं कह चुका।’
संत बोले, ‘जब आपके घर कोई मेहमान आता है तो आप क्या करते हैं?’
उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘हम मेहमान का स्वागत करते हैं, उसका सत्कार करते हैं। कोई नादान ही होगा जो अतिथि का सत्कार नहीं करेगा।’
संत ने फिर पूछा, ‘आपके घर जो भी व्यक्ति आया है, आपने उसे कोई सेवा सौंपी और उसने स्वीकार नहीं की तो वह चीज कहां जाएगी?’
व्यक्ति ने कहा, ‘वह चीज हमारे पास ही रह जाएगी।’
संत बोले, ‘आप मेरे अतिथि की तरह हैं। आपने मुझे जो सौंपा है, वह मैंने स्वीकार ही नहीं किया है। जितने अपशब्द और गालियां आपने मुझे दीं, मैंने स्वीकार नहीं की तो वह किसके पास गईं? आप ही के पास गईं।’ संत की बातें वह व्यक्ति समझ गया।
सीख – हमें भी ये समझना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति हमारा अपमान करे, कोई अपशब्द कहे तो उन बातों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए। ऐसी बातें स्वीकार ही न करें, क्योंकि अगर हम ऐसी बातें स्वीकार करेंगे तो हमें गुस्सा आएगा, मन अशांत हो जाएगा। सामने वाले व्यक्ति ने तो गुस्सा करके खुद का नुकसान कर ही लिया है और हम भी गुस्सा कर लेंगे तो हमारा भी नुकसान हो जाएगा।