चंबा (टिहरी)।
पहाड़ी इलाके में प्राकृतिक जल स्रोत ग्रामीणों की जीवन रेखा माना जाता है। यह जल स्रोत प्राचीन समय से ही गांव में पीने एवं अन्य घरेलू आवश्यकताओ की जलापूर्ति का मुख्य जरिया रहे हैं। ठीक इसी को ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने सकलाना रेंज में कई गांवों के प्राकृतिक पेयजल स्रोतों का संरक्षण करना शुरू कर दिया है। मुहिम रंग लाई तो आने वाले दिनों में जल संचय के लिहाज से यह योजना काफी कारगर साबित हो सकती है।
जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। लेकिन, हमारे जल संसाधन तेजी से घट रहे हैं। अब सबसे बड़ी चुनौति प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण और सवंर्द्धन करने की है। बदलते दौर, जीवनशैली में आए बदलाव और पाइपलाइन आधारित पेयजल आपूर्ति के चलते प्राकृतिक पेयजल स्रोत उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। वहीं, बारिश और अन्य माध्यमों से स्रोत पूर्णतः रिचार्ज नहीं हो पा रहे हैं।
चंबा के सकलाना रेंज की बात करें, तो यहां कई प्राकृतिक पेयजल स्रोत संरक्षण के अभाव में सूखने लगे थे। अब वन विभाग ने सकलाना रेंज में हेंवल नदी पुनर्जीवन परियोजना के तहत जर्जर हो चुके पेयजल स्रोतों के संरक्षण का काम शुरू कर दिया है। विभाग ने अभी तक एक दर्जन से अधिक प्राकृतिक पेयजल धाराओं को संरक्षित कर दिया है। इनमें चोपड़ियाल गांव के चरीखाला, गुनोगी गांव के नवापानी धारा, रतनाली के खासकी धारा, खुरेत गांव के कोडी खाला, स्यूल गांव के स्यूल गाड, पुजाल्डी के गिन्डाडू, बाडियो के अंधियार खाला, जड़ीपानी के धारखाला के प्राकृतिक पेयजल धाराओं को पुनर्जीवित कर दिया है। इसके लिए विभाग ने प्राकृतिक पेयजल स्रोतों के आस-पास चाल-खाल, चैकडेम, कंटूर ट्रैंच, जलकुंड और पानी बढ़ाने वाले वृक्षों का रोपण किया है। विभाग के इस प्रयास से पेयजल धारा रिचार्ज होने लगी हैं।
रेंजर बुद्धि प्रकाश ने बताया कि हेंवल नदी पुनर्जीवन परियोजना के तहत प्राकृतिक पेयजल स्रोतों को संरक्षण किए जाने का कार्य किया जा रहा है। चाल-खाल, चैकडेम, कंटूर ट्रैंच, जलकुंड और पानी बढ़ाने वाले वृक्षों का रोपण किए जाने से स्रोत दोबारा से रिचार्ज हो रहे हैं। इससे स्थानीय ग्रामीणों को पेयजल और कृषि के लिए सिंचाई का पानी मिलने लगा है।