”’ *मांगलिक ऊषा का हार्दिक अभिनन्दन एवं सु स्वागत* “‘
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
*भारतीय आध्यात्म विज्ञान शोध का विषय है। अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियां हमारे महापुराणों, वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों व शास्त्रों में भरी पड़ी हैं। आज हम भगवान भोलेनाथ के प्रतीक चिन्हों व त्रिदेवों के उद्भव के विषयक संक्षिप्त जानकारी पर बात कर रहे हैं।
‘ भगवान शिव के प्रतीक चिह्न :’
” वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं। हालांकि अधिकांश लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।*
भगवान शिव की जटाएं हैं। उन जटाओं में एक चंद्र चिह्न होता है। उनके मस्तष्क पर तीसरी आंख है। वे गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला लपेटे रहते हैं। उनके एक हाथ में डमरू तो दूसरे में त्रिशूल है। वे संपूर्ण शरीर पर भस्म लगाए रहते हैं। उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं। वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं। माना जाता है कि केदारनाथ और अमरनाथ में भोलेनाथ विश्राम करते हैं।
“‘ *त्रिदेवों के उद्भव के विषयक थोड़ी जानकारी* “
“‘ *ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म एक रहस्य है। तीनों के जन्म की कथाएं वेद और पुराणों में अलग-अलग हैं, लेकिन उनके जन्म की पुराण कथाओं में कितनी सच्चाई है और उनके जन्म की वेदों में लिखी कथाएं कितनी सच हैं, इस पर शोधपूर्ण दृष्टि की जरूरत है।*
*यहां यह बात ध्यान रखने की है कि ईश्वर अजन्मा है। अजर है, अमर है।*