आज है लाला लाजपत राय की जयंती, ऐसे रखी थी पहले स्वदेशी बैंक की नींव

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

लाला लाजपत राय का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शुमार होता है। उन्हें पंजाब-ए-शेर कहा जाता है। उन्होंने ना केवल भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई बल्कि एक आदर्श नेता रूप में अपनी पहचान बनाई। आज लाला लाजपत राय की जयंती है। आइए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बाते जानते हैं, जिसे शायद ही आप जानते होंगे।


‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की आखिरी कील साबित होगी’ ये शब्द महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के हैं, जो उन्होंने एक विरोध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों के लाठीचार्ज में घायल होने के बाद कहे थे। उनकी ये बात सही साबित हुई और इस घटना के दो दशक के अंदर ब्रिटिश साम्राज्य का भारत से नामोनिशान मिट गया।

महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के फिरोजपुर जिले में हुआ था। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे हिसार और लाहौर में वकालत करने लगे। कुछ वक्त बाद ही वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।

उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। साथ ही वह हिंदू धर्म में फैली कुरीतियों के खिलाफ और हिंदी भाषा की श्रेष्ठता के लिए भी काम करते रहे। उन्हें पंजाब का शेर और पंजाब केसरी भी कहा जाता है।

लाला लाजपत राय ने रखी पहले स्वदेशी बैंक की नींव

स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ जुड़कर उन्होंने पंजाब में आर्य समाज को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। लाला जी एक बैंकर भी थे। उन्होंने देश को पहला स्वदेशी बैंक दिया। पंजाब में लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक के नाम से पहले स्वदेशी बैंक की नींव रखी थी। एक शिक्षाविद के तौर पर उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों का भी प्रसार किया। आज देश भर में डीएवी के नाम से जिन स्कूलों को हम देखते हैं, उनके अस्तित्व में आने का बहुत बड़ा कारण लाला लाजपत राय ही थे।

अंग्रेजों के लाठीचार्ज में घायल हुए थे लाला लाजपत राय
3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत आया। अंग्रेजों ने इस कमीशन का गठन भारत में कानूनों में सुधार के लिए किया था। इस कमीशन में एक भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था और इसी वजह से पूरे देश में इसका विरोध हो रहा था। लाला लाजपत राय ने भी इस कमीशन का जोरदार विरोध किया था, क्योंकि उन्हें पता था कि उसमें बिना किसी भारतीय प्रतिनिधि के भारतीयों का भला होना मुमकिन नहीं था। लालाजी ने नारा दिया था ‘साइमन कमीशन वापस जाओ।’

लाला लाजपत राय ने वकालत की पढ़ाई की थी। इसे आगे बढ़ाने की बजाय वे आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में हुए एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए। इसी चोट की वजह से 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

लाला लाजपत राय की मौत ने देश में क्रांति की नई आग लगा दी थी। इससे प्रेरित होकर कई युवा आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। लाला जी की मौत के दो दशक के अंदर ही अंग्रेजों को अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर भारत छोड़कर जाना पड़ा और देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया।

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