ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का बहुत महत्व है। कुंडली में ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख का आगमन होता है। नौ ग्रहों की अपनी-अपनी भूमिका होती है। इससे व्यक्ति के जीवन में होने वाले उतार-चढ़ाव को देखा जा सकता है। गुरु ग्रह को हम बृहस्पति ग्रह के नाम से भी जानते हैं। जब कुंडली में गुरु ग्रह सही घर में स्थित होते हैं, तो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। गुरु ग्रह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। आज बृहस्पतिवार अर्थात् गुरु वार है, गुरु माने देव गुरु, जिन्हें नवग्रहों में भी महत्वपूर्ण स्थान मिला है। तो आईए आज हम गुरु ग्रह के विषयक जानकारी जानते हैं-
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
गुरुदेव बृहस्पति के विषम फल, कारण और निवारण
आज तक हम लोग गुरु को सौरमंडल का सिर्फ एक ग्रह तक ही सीमित कर पाए हैं, गुरु ग्रह नहीं बल्कि एक सकारात्मक आकर्षण का कारण भी होता हैं, जैसे शिखा बांधने का सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं, उसी तरह सिर पर पल्लू लेने का भी सकारात्मक असर होता हैं।
ये बात भी सच है कि आजादी के इस युग मैं मनचाहे कपड़े पहनने की आजादी हो गई है पर आजादी और संस्कार दोनों अलग-अलग होते हैं। अब जींस, पैंट, टी शर्ट की दुनिया मैं सिर पर पल्लू , चुनरी आदि के संस्कार प्रायः लुप्त हो गए हैं।
अगर जन्म- कुंडली में बृहस्पति शुभ प्रभाव दे तो महिला धार्मिक, न्याय प्रिय, ज्ञानवान, पति प्रिया और उत्तम संतान वाली होती हैं। ऐसी महिलाएं विद्वान होने के साथ – साथ बेहद विनम्र भी होती हैं।
यदि बृहस्पति कमजोर हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है, पर लग्न कौन सा है, यह देखकर ही पहने गुरुवार का व्रत करें, नग सोने की अंगूठी में धारण करें, पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले भोजन का ही सेवन करें।
एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी बृहस्पति अनुकूल होता है।
उग्र बृहस्पति को शांत करने के लिए बृहस्पति वार का व्रत करना, पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए। केले के वृक्ष की पूजा करें और विष्णु भगवान् को केले का भोग लगाएं और छोटे बच्चों, मंदिरों में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।
अगर दाम्पत्य जीवन कष्टमय हो तो हर बृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी, देसी घी और चने की दाल (सभी एक चुटकी मात्र ही) रख कर गाय को खिलाएं।
कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही बृहस्पति को चपाती पर गुड़ की डली रख कर गाय को खिलानी चाहिए।
सबसे बड़ी बात यह है कि झूठ से जितना परहेज किया जाय, बुजुर्गों और अपने गुरु,शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही बृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।
जिन महिलाओं या पुरुषों का गुरु उच्च राशि का हो वो अपने पहने हुए कपड़े भी दान न करें।
“गुरु का व्यक्तिगत सम्बन्धों पर असर”
“बृहस्पति वृद्ध, समझदार और संबंधों को जोड़कर रखने वाला ग्रह है।कुंडली में कई तरह के अशुभ योग और पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण रिश्तों में खराबी और खटास आने लगती है जिस कारण एक समय ऐसा आता है कि वह रिश्ते ख़त्म होने की कगार पर आ जाते हैैं। हर एक रिश्ते का कोई न कोई कारक ग्रह होता है। जैसे सूर्य पिता, चंद्र माँ, मंगल छोटा भाई,। बुध बहन, मित्र, बुआ, फूफा, मोसी, मौसा, बृहस्पति दादा, पुत्र गुरु, घर का कोई बुजुर्ग व्यक्ति, शुक्र पत्नी प्रेमिका, शनि चाचा, ताऊ, नौकर संबंधियों का कारक होता है। इसी तरह अलग-अलग भावों से अलग अलग संबंधियों का विचार किया जाता है। यहाँ बात रिश्तों में बृहस्पति के विषय में की जा रही है।
“चौथा भाव माँ के रिश्ते का भाव होता है तो चंद्र सम्बन्ध में माँ का कारक ग्रह है। शनि राहु केतु यह पृथकता वादी ग्रह या पीड़ा देने वाले स्वभाव के होते हैं।”
चौथा भाव, भावेश और चंद्र पर शनि राहु केतु जैसे ग्रहों का प्रभाव मातृ सुख की हानि करने वाला होता है। चौथा भाव, भावेश और चंद्र बहुत ज्यादा कमजोर होकर शनि राहु केतु पृथकतावादी ग्रहों के प्रभाव से मातृ सुख में कमी कर देंगे या माँ को दूर कर देंगे, आदि जिससे मातृ सुख की हानि होगी और ज्यादा स्थिति चौथे भाव, भावेश और चंद्र की ख़राब स्थिति होने पर निश्चित ही माँ का सुख नहीं मिलता।
ऐसी स्थिति में चौथे भाव, भावेश और चंद्र का बली गुरु के प्रभाव में होना आपके और आपकी माँ के बीच सुख में वृद्धि कर संबंधों को स्थाई रूप से ठीक तरह से चलाता रहेगा।इसके लिए आवश्यक है गुरु का कुंडली में शुभ स्थिति में होना।शुभ गुरु सुख में वृद्धि करने वाला होता है। जिस भाव, भावेश और कारक सम्बन्धों पर गुरु का शुभ प्रभाव पड़ेगा ऐसे संबंधियों के साथ आपके अच्छे और मधुर सम्बन्ध रहेंगे।
पाप ग्रहों का प्रभाव ऐसे भाव, भावेश और कारक ग्रहों संबंधों पर होने से सुख की हानि होकर परेशानियां होती हैं साथ ही सम्बन्ध भी ख़राब होते है। पाप ग्रहों के साथ जहाँ शुभ गुरु का प्रभाव पड़ेगा उस स्थान की हानि नहीं होती। ऐसी स्थिति में आपके संबंधियों से आपके अच्छे और मधुर सम्बन्ध रहते हैं क्योंकि गुरु कभी भी स्थिति को बिगड़ने नहीं देता यह सभी को एकसाथ जोड़कर रखने का काम करता है। इसी कारण गुरु को दोषों का नाश करने वाला और बेहद शुभ ग्रह माना गया, कुंडली का शुभ और अनुकूल बृहस्पति कई तरह के अनिष्टों की शांति करने में सक्षम होता है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन लग्न के लिए गुरु बेहद शुभ होता है।”
‘नीचे दिए गए शास्त्रसम्मत वैदिक उपाय करने से गुरु के अरिष्ट प्रभावों में लाभ मिलता है एवं कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
“गुरु के अरिष्ट फल नाशक उपाय” :—
1–21 गुरुवार तक बिना क्रम तोड़े हर गुरुवार का व्रत रख कर भगवान् विष्णु के मंदिर में पूजा के उपरांत पंडित जी से लाल या पीले चन्दन का तिलक लगवाए तथा यथा शक्ति बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ा कर बालकों में बाँटना चाहिए। इससे लड़की या लड़के के विवाह आदि सुख संबंधों में पड़ने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
2– भगवान् विष्णु के मंदिर में किसी शुक्ल पक्ष से शुरू करके 27 गुरुवार तक प्रत्येक गुरुवार को चमेली या कमल का फूल तथा कम से कम पांच केले चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होती है।
3–गुरुवार के दिन, दिन में ही बिना सिले पीले रेशमी रुमाल में या वस्त्र में हल्दी की गाँठ या केले की जड़ को बांधकर रखें, इसे गुरु के बीज मंत्र (“ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः”) की 3 माला जप कर गंगाजल के छींटे लगा कर पुरुष दाहिनी भुजा तथा स्त्री बाई भुजा पर धारण करे इससे भी बृहस्पति के अशुभ फलों में कमी आती है।
4– गुरु पुष्य योग में या गुरु पूर्णिमा के दिन, बसंत पंचमी के दिन, अक्षय तृतीया या अपनी तिथि अनुसार जन्मदिन के अवसर पर श्री शिवमहापुराण, भागवत पुराण, विष्णुपुराण, रामायण, गीता, सुंदरकांड, श्री दुर्गा शप्तशती आदि ग्रंथों का किसी विद्वान् ब्राह्मण को दान करना अतिशुभ होता है।
5–किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आरम्भ कर रात में भीगी हुई चने की दाल को पीसकर उसमें गुड़ मिलाकर रोटियां लगातार 21 गुरुवार गाय को खिलाने से विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती है। किसी कारण वश गाय ना मिले तो 21 गुरुवार तक ब्राह्मण दंपति को खीर सहित भोजन कराना शुभ होता है।
6–जन्म कुंडली में गुरु यदि उच्चविद्या, संतान, धन आदि पारिवारिक सुखों में बाधाकारक हो तो जातक को माँस, मछली शराब आदि तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। अपना चाल-चलन भी शुद्ध रखना चाहिए।
7–कन्याओं के विवाहादि पारिवारिक बाधाओं की निवृत्ति के लिए श्री सत्यनारायण पूजन अथवा गुरुवार के 21 व्रत रख कर मंदिर में आटा, चने की दाल, गेंहू, गुड़, पीला रुमाल, पीले फल आदि दान करने के बाद केले के वृक्ष का पूजन एवं मनोकामना बोलकर मौली लपेटते हुए 7 परिक्रमा करनी चाहिए।
8–यदि पंचम भाव अथवा पुत्र संतान के लिए गुरु बाधा कारक हो तो हरिवंशपुराण एवं श्री सन्तानगोपाल या गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ जप करना चाहिए।
9–गुरु कृत अरिष्ट एवं रोग शांति के लिए प्रत्येक सोमवार और वीरवार को श्री शिवसहस्त्र नाम का पाठ करने के बाद कच्ची लस्सी, चावल, शक्कर आदि से शिवलिंग का अभिषेक करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
10–इसके अतिरिक्त गुर जनित अरिष्ट की शांति के लिए ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से गुरु के वैदिक मन्त्र का जप एवं दशांश हवन, करवाने से अतिशीघ्र शुभ फल प्रकट होते हैं।
11–पुखराज 8, 9 या 12 रत्ती का सोने की अंगूठी में पहनने से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य, एवं आयु वृद्धि, वैवाहिक सुख, पुत्र-संतानादि कारक एवं धर्म-कर्म में प्रेरक होता है। इससे प्रेत बाधा एवं स्त्री के वैवाहिक सुख की बाधा में भी कमी आती है।
12–शुक्ल पक्ष के गुरूवार को, गुरु पुष्य योग, गुरुपूर्णिमा अथवा पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद आदि नक्षत्रों के शुभ संयोग में विधि अनुसार गुरु मन्त्र उच्चारण करते हुए सभी गुरु औषधियों को गंगा जल मिश्रित शुद्ध जल में मिला कर स्नान करने से पीलिया, पांडुरोग, खांसी, दंतरोग, मुख की दुर्गन्ध, मंदाग्नि, पित्त-ज्वर, लीवर में खराबी, एवं बवासीर आदि गुरु जनित अनेक कष्टों की शांति होती है।