पुराणों के अनुसार, गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा का दर्शन करना वर्जित माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्र दर्शन से झूठे कलंक लग सकते हैं।
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश से जुड़ा महापर्व गणेश उत्सव कल बुधवार से शुरू होगा। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की रात को चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस रात चंद्रमा को देखने से व्यक्ति को भविष्य में झूठा आरोप लग सकता है।
आज भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी ( कलंक चतुर्थी) है, आज सायं साढ़े तीन बजे से चतुर्थी तिथि प्रारम्भ हो गई है और चन्द्रमा के दर्शन सायंकाल को होंगे, अतः आज के दिन चन्द्रमा का दर्शन निषेध है। चतुर्थी कल दिन में तीन बजकर पच्चीस मिनट तक है अतः गणेश चतुर्थी कल मनाई जाएगी, पर चन्द्र दर्शन का निषेध आज है। विवाद का विषय नहीं अपितु तिथियों के घटते बढ़ते क्रम का है। इस दिन चन्द्रमा के दर्शन होने से मिथ्या कलंक लगता है, पर यदि चतुर्थी तिथि में चन्द्र उदय होकर पंचमी तिथि में अस्त होता है तब इस सिद्धिविनायक व्रत के दिन चन्द्र दर्शन होना दोष कारक नहीं होता है। पर इस वार ऐसा नहीं है। यदि चन्द्रमा अस्त होते समय चतुर्थी तिथि में है तो अशुभ व दोष कारक है। इस बार ऐसा ही है कि अस्त होते समय चन्द्रमा चतुर्थी तिथि में है।
अतः ऐसी सावधानी रखनी चाहिए कि इस दिन चन्द्रमा का दर्शन न हो। यदि दैववशात् चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के शमन के लिए इस मंत्र का पाठ करना चाहिए और स्यमन्तक मणि की कथा सुननी चाहिए या पढ़नी चाहिए।
सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत: ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक:।।
अतः स्वाभाविक है कि आज मन में यह विचार रहेगा कि ‘आज चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना है’ बार – बार इसका स्मरण करने से वह अवश्य देखा जाएगा । ‘नहीं देखना है’ ? यदि यह बात याद ही नहीं रखी जाएगी तो चन्द्रमा नहीं दिखाई देगा, अतः इस बात को मन से हटाना ही होगा कि आज कलंक चतुर्थी है। ठीक उसी प्रकार जब तक हमारे मन में यह ( मिथ्या , अन्याय , द्वैष , क्रोध , असहिष्णुता, लोभ , बेईमानी , अशांति ,भोग लालसा ,विवाद की इच्छा, विषाद आदि) अशुभ विचार रहेंगे , तब तक हम पवित्र या सुखी जीवन नहीं जी सकते हैं अतः इनको हृदय से निकालना आवश्यक है । किसी भी तरह यदि हम इनको बार – बार स्मरण करते हैं तो ये कुविचार मन में घर कर जाते हैं , प्रगाढ़ हो जाते हैं । फलत: हम जीवन में अच्छा कार्य नहीं कर सकते हैं। इसलिए मन से बुरी भावनाओं को हटाने की कोशिश करनी चाहिए ।
इसी तरह अशुभ विचारों को मन से निकालने की दृष्टि से भी बार- बार उनका स्मरण होगा और अशुभ विचार मन से नहीं निकलेंगे । अतः शुभ विचारों का चिन्तन करने से अशुभ विचार स्वत: हट जायेंगे।
भगवान श्रीकृष्ण पर लगा था चोरी का आरोप
सत्राजित् नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेन के दरबार में आया। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती।
किसी तरह यह बात सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन जंगल गया। वहां सिंह ने उसे मार डाला। जब वह वापस नहीं लौटा तो लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। इसलिए सत्राजित् को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी, लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह गई। जाम्बवान ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए।
वे जाम्बवान की गुफा तक पहुंचे और जाम्बवान से मणि लेने के लिए उसके साथ 21 दिनों तक घोर संग्राम किया। अंतत: जाम्बवान समझ गया कि श्रीकृष्ण तो उनके प्रभु हैं। त्रेता युग में श्रीराम के रूप में वे उनके स्वामी थे। जाम्बवान ने तब खुशी-खुशी वह मणि श्रीकृष्ण को लौटा दी तथा अपनी पुत्री जाम्बवंती का विवाह श्रीकृष्ण से करवा दिया। श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्राजित् को सौंप दी। सत्राजित् ने भी खुश होकर अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया। ऐसा माना जाता है कि इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से भाद्रपद मास की चतुर्थी को भूल से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता।