कामाख्या मंदिर के कपाट खुले: अंबुबाची मेला समाप्त, मंदिर में सार्वजनिक पूजा शुरू

गुवाहाटी

Uttarakhand

नीलाचल पहाड़ियों के शीर्ष पर स्थित कामाख्या मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। 51 शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर अंबुबाची उत्सव की समाप्ति पर चार दिन के अंतराल के बाद खुला है। माना जाता है कि इस अंतराल के दौरान देवी सालाना मासिक धर्म से गुजरती हैं।

कपाट खुलने के साथ ही मंदिर परिसर में इस अवधि के दौरान आयोजित चार दिवसीय मेले का भी समापन हो गया है। दो साल के अंतराल के बाद भक्तों को मेले में भाग लेने की अनुमति दी गई। राज्यपाल जगदीश मुखी और उनकी पत्नी रविवार सुबह सबसे पहले देवी की पूजा करने वालों में शामिल थे।

देशभर से भक्त और हिंदू भिक्षु, जो इस अवधि के दौरान मंदिर में आते हैं, देवी की पूजा करने के लिए लंबी कतारों में प्रतीक्षा करते दिखे।

अंबुबाची मेला संपन्न हो चुका है। आइए, जानते हैं कि कामाख्या शक्ति पीठ की पौराणिक कथा क्या है और अंबुबाची मेला क्यों मनाया जाता है।

शक्तिपीठों की पौराणिक कथा

शिव महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शिव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री देवी सती से हुआ था। शिव जी को प्रजापति दक्ष पसंद नहीं करते थे। उन्होंने हरिद्वार के कनखल में एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने इस पवित्र अनुष्ठान में सभी देवी-देवताओं और ऋषियों-मुनियों को आमंत्रित किया, लेकिन शिव जी और सती को न्योता नहीं भेजा। देवी सती इसके बावजूद पिता दक्ष के यहां यज्ञ में जाना चाहती थी। भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना बुलाए ऐसे किसी कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए। देवी सती ने तर्क दिया कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए और वह जिद कर यज्ञ में चली गईं।

देवी सती का वियोग और शिवजी का क्रोध 

यज्ञ स्थल पर दक्ष प्रजापति ने शिव जी के लिए कुछ ऐसी बातें कही जो देवी सती को अपमानजनक लगीं। क्रोधित होकर उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड की अग्नि में अपनी जीवन लीला को खत्म कर लिया। जानकारी मिलने भगवान शिव के क्रोध का पारावार नहीं रहा। उन्होंने दक्ष प्रजापति को दंड देने के लिए वीरभद्र से कहा। देवी सती के जलते शरीर को उठाकर क्रोध, शोक और वियोग में वह भटकने लगे। भगवान विष्णु ने उनका मोह दूर कर उन्हें शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से देवी सती के जलते शरीर को खंडित करने के लिए कहा।

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51 शक्तिपीठों में एक है कामाख्या मंदिर

इस क्रम में देवी सती के शरीर के विभिन्न अंग कई स्थानों पर गिरे. उन स्थानों पर देवी के शक्तिपीठ स्थापित हो गए। भारत में ऐसे 51 प्रसिद्ध शक्ति पीठ हैं. कुछ शास्त्रों में इसकी संख्या 121 भी बताई गई है। विभाजन के बाद कुछ शक्तिपीठ पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान ( अब बांग्लादेश ) में स्थित हैं। मान्यता है कि असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर नीलांचल पहाड़ी पर माता देवी सती के गोपनीय अंग गिरा था। इस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थापित है।

क्यों मनाया जाता है अंबुबाची उत्सव या मेला

कामाख्या मंदिर में हर साल आषाढ़ महीने में यानी लगभग 22 जून से 26 जून तक अंबुबाची उत्सव या मेला मनाया जाता है। मान्यता है कि इन दिनों में देवी मां रजस्वला होती हैं। इस कारण अंबुबाची उत्सव के दौरान कामाख्या मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है। इस बीच मंदिर में तंत्र-मंत्र की साधनाएं होती हैं. इन साधनाओं के लिए कामाख्या मंदिर दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है। यहां देवी त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला के साथ ही देवियों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर के पास स्थित भूतनाथ श्मशान में पूरी रात जलते शवों के बीच तंत्र साधनाओं के लिए बहुत भीड़ उमड़ती है। इस दौरान बड़ी संख्या में महिला तांत्रिकों की मौजूदगी भी होती है।

मंदिर के पास कपड़ों में रहते हैं नागा साधू

विश्व प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर मेले में देशभर से नागा साधु जुटते हैं। महिला नागा साधु भी यहां साधना करने पहुंचती हैं। आमतौर पर बिना कपड़ों के रहने वाले नागा साधु इस मंदिर के आसपास पूरे कपड़ों में रहते हैं। वे सभी कहते हैं कि देवी कामाख्या उनकी मां हैं और मां के सामने वे बिना कपड़ों के नहीं रह सकते।

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