ईश्वर ने हर व्यक्ति को दो हाथ, दो पैर और एक मुंह देकर इस पृथ्वी पर भेजा है, जिससे कि वह अच्छे कर्म कर जीवन को सफल बना सके। जो भी व्यक्ति अपने कर्म को मन लगाकर करता है वह जीवन में सफलता को प्राप्त करता है। बिना कर्म के जीवन बेकार है। कर्म कर ही व्यक्ति जीवन में भौतिक या आध्यात्मिक क्षेत्र में सफल हो सकता है।
कर्म ही जीवन का सार है। बिना फल की चिंता किए अपने कार्य को करते रहना चाहिए। ईश्वर कहता है कि मैं हूं और प्रयास करने पर मिल जाऊंगा। तो यह पक्का आश्वासन है कि परमात्मा है और मिल भी जाएगा, लेकिन उससे पहले जो हाथ लगेगा, वह उल्टा होगा। जैसे समुद्र मंथन में अमृत से पहले जहर निकला था।
ईश्वर की खोज में निकलेंगे तो सबसे पहले मिलेंगे बाहर के हालात, जो अनुकूल भी हो सकते हैं, प्रतिकूल भी। उसके बाद शरीर मिलेगा। उसमें भी स्त्री-पुरुष का झंझट होगा। इससे आगे बढ़ेंगे तो मिलेगा मन यानी गंदगी का ढेर है। इससे आगे आत्मा से साक्षात्कार होगा और अगले कदम पर प्रतीक्षा कर रहा होता है परमात्मा। वह सब देखता और जानता भी है कि कोई हालात से घबरा जाता है, कोई शरीर पर टिककर वहीं से लौट जाता है, कोई मन में उलझकर रह जाता है।
बहुत कम लोग आत्मा तक आते हैं और उनमें भी कम ही होंगे जो आत्मा को पार कर मुझ तक आ पाएंगे। लेकिन, मैं हूं और प्रतीक्षा कर रहा हूं। इसीलिए ईश्वर मनुष्यों को कई जन्म, कई अवसर देता है कि तुम लगे रहो, मैं मिलकर रहूंगा। मनुष्य अपने बाकी प्रयासों से थक सकता है, पर एक प्रयास ऐसा है जिसमें थकान कम, उत्साह ज्यादा आएगा। इस प्रयास का नाम है योग। योग करते रहिए, भगवान मिलकर रहेगा।