हिमशिखर पर्यावरण डेस्क
विनोद चमोली
पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपना जीवन समर्पित करने वाले विश्व विख्यात पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके परिवार में पत्नी विमला, दो पुत्र और एक पुत्री है। उनके जाने से उत्तराखण्ड को बड़ी क्षति पहुंची और राज्य में शोक व्याप्त है। इस लेख में हम गांधी के पक्के अनुयायी के जीवन के बारे में जानते हैं कुछ खास बातें…
जीवन परिचय
सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी जिले के मरोड़ा गांव में हुआ। उनके पिता अंबा दत्त टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे।
श्रीदेव सुमन ने बदला जीवन
जब सुंदर लाल बहुगुणा 13 वर्ष के थे, तब वह श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। सही मायनों से यहीं से सुंदर लाल बहुगुणा के जीवन का नया टर्निंग प्वाइंट आया। उस समय रोजाना की तरह बहुगुणा अन्य बच्चों की तरह मैदान में खेल रहे थे। अचानक एक अजनबी युवक वहां आया। उसने खादी का कुर्ता, टोपी और धोती पहनी हुई थी। उसके पास एक संदूकची थी। बच्चों ने कौतूहलवश युवक से पूछा कि संदूकची में क्या रखा है तो उसने संदूकची खोली और पेड़ की छांव में बैठकर चरखे पर सूत कातने लगा। श्रीदेव सुमन ने कहा कि यह गांधी जी का चरखा है। इससे हम अपने कपड़े खुद बनाएंगे और अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़ने के लिए विवश कर देंगे। सुमन ने बच्चों से पूछा, तुम पढ़-लिख कर क्या करोगे, बच्चों ने कहा, ‘राजपरिवार की सेवा’। सुमन ने कहा फिर जनता की सेवा कौन करेगा, क्या तुम चंद चांदी के टुकड़ों में खुद को बेच दोगे? इस सवाल ने किशोर सुंदर लाल को अंदर तक झकझोर दिया।
जीवन का दूसरा अहम मोड़
युवा सुंदर लाल बहुगुणा के जीवन में एक अहम मोड़ तब आया जब 1955 में गांधी जी की अंग्रेज शिष्या सरला बहन के कौसानी आश्रम में पढ़ी विमला नौटियाल ने उनसे शादी के लिए राजनीति छोड़ने और सुदूर किसी पिछड़े गांव में बसने की शर्त रखी। सुंदर लाल ने शर्त मान ली और टिहरी से 22 मील दूर पैदल चल कर सिल्यारा गांव में झोपड़ी डाल दी। 19 जून 1956 को वहीं विमला नौटियाल से शादी की। झोपड़ी में शुरू की गई पर्वतीय नव जीवन मंडल संस्था गांधी जी के अहिंसा के प्रयोग का केंद्र बन गई। यहां से कई गांधीवादी कार्यकर्ता निकले। यहीं से सुंदर लाल बहुगुणा ने पहले अस्पृश्यता निवारण (मंदिर में हरिजन प्रवेश), शराबबंदी और चिपको आंदोलन चलाया।
सिल्यारा आश्रम को बनाया ग्राम स्वराज की प्रयोगशाला
बहुगुणा दंपत्ति ने सिल्यारा आश्रम को गांधीजी के ग्राम स्वराज की प्रयोगशाला बना डाला। तब लड़कियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी। उन्होंने आश्रम में बालिकाओं के लिए आवासीय स्कूल खेाला। इसमें उन्हें पढ़ाई के अलावा सामान्य कामकाज व सिलाईए कताईए बुनाई भी सिखाई जाती। यही नहीं वे सायं को गांव में जाकर महिलाओं को भी उनके घरों में जाकर पढ़ाने लगे। महिलाओं के सहयोग से गांवों में शराबबंदी भी की। इसी साल बूढ़ाकेदार मंदिर में हरिजनों का प्रवेश भी कराया।