जय प्रकाश पंवार
हिमशिखर डेस्क
पहाड़ की महिलाओं के उत्थान, युवाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसर को बढ़ाने वाले भुवनेश्वरी महिला आश्रम अंजनीसैण के पूर्व सचिव सिरिल रोबिन रैफियल (82 वर्ष) नहीं रहे। सत्तर के दशक में सिरिल ने सात समुंदर पार कनाडा को छोड़कर देवभूमि को अपनी कर्मभूमि बना दिया था। इस दौरान उन्होंने भुवनेश्वरी महिला आश्रम के स्वामी मनमथन के साथ जुड़कर पहाड़ के गांवों के विकास के लिए काफी संघर्ष किया।
भारतीय संस्कृति समूचे विश्व को सदियों से अपनी ओर आकर्षित करती रही है। यही कारण है कि पराई धरती से इस भारत भूमि में कई जिज्ञासु लोग यहां आकर यहीं के हो गए। ठीक इसी प्रकार सत्तर के दशक में सिरिल आर रैफियल भी पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध को छोड़कर वापस अपनी जन्मभूमि भारत लौट आए। बताते चलें कि सिरिल आर रैफियल का जन्म 12 नवंबर 1939 को प्रयागराज इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता ब्रिटिश आर्मी मेें डाॅक्टर थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उनके पिता अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए परिवार को लेकर ब्रिटेन चले गए।
प्रबंधन की पढ़ाई के बाद सिरिल ब्रिटिश एयरवेज में मैनेजर पद पर नियुक्त हो गए। दुनिया घूमने के बचपन के सपनों को मानो पंख से लग गए। कुछ सालों बाद ही एयरवेज की नौकरी से ऊब आने लगी। ब्रिटेन के मौसम से सिरिल तंग आ चुके थे, ऐसे में कनाडा को नया ठिकाना बनाया। इस दौरान उनके मन के भीतर हमेशा जन्म भूमि भारत के प्रति खिंचाव रहता था।
भारत की सांस्कृतिक विविधता व जनजीवन से अथाह प्यार करने वाले सिरिल काे एक मौका इलाहाबाद महाकुंभ में शामिल होने का मिला। यही वो अवसर था कि कि जब उन्होंने मन बना लिया था कि वे जल्द दोबारा वापस भारत लौटेंगे और फिर कभी विदेश नहीं जाएंगे। अगले 6 महीने के भीतर 1976 में सिरिल ने कनाडा की सारी संपति दोस्तों में बांटकर जरूरत भर सामान को दो सूटकेशों में भरा और मसूरी पहुंच गए। यहां उनके पुराने दोस्तों के बीच वे जल्दी रच बस गए। इस दौरान उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड की कहानी पर ‘बिग बिजनेस’ फिल्म बनाई। लेकिन उनके जीवन का मुकाम तो कुछ और ही था।
एक दिन मसूरी में उनकी मुलाकात भुवनेश्वरी महिला आश्रम के स्वामी मनमथन से हुई। इस मुलाकात ने सिरिल को सामाजिक कार्यो के लिए प्रेरित किया। कुछ दिनों बाद ही सिरल मसूरी के आरामदायक जीवन को छोड़कर टिहरी गढ़वाल के अंजनीसैण के गांव में झोपड़ी में रहने लगे।
जिस पर उन्होंने स्वामी मनमथन के साथ मिलकर आश्रम को सामाजिक गतिविधियों का केंद्र बनाना शुरू कर दिया। महिला व बाल विकास, रोजगार कौशल, जन वकालात, जल, जंगल, जमीन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आपदा प्रबंधन जैसे अनेक कार्य संस्था ने शुरू किए। साथ ही परित्यक्ता महिलाओं और बिन माता-पिता की संतानों के जीवन को संवारने के साथ ही पर्वतीय गांवों के विकास का बीड़ा उठाया। आश्रम में पले बढ़े बच्चे आज सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
2008 में सिरिल ने स्वेच्छा से संस्था के दैनिक कार्यों से अपने को विराम देते हुए आश्रम में पले-बढ़े बच्चों को संस्था की बागडोर सौंप दी। वह अंतिम समय तक अपनी कर्मभूमि भुवनेश्वरी महिला आश्रम परिसर में ही डटे रहे। पिछले दिनों अत्यंत बुुजुर्ग होने के कारण रोगग्रस्त होने पर उन्हें उपचार के लिए हर्बर्टपुर लाया गया। जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
सनातन धर्म के अनुसार हुआ अंतिम संस्कार
सिरिल रैफियल का भारतीय संस्कृति के प्रति इतना प्रेम था कि उन्होंने अपने अंतिम संस्कार को भी सनातन परंपरा के अनुसार करने की इच्छा जताई थी। इसे देखते हुए आश्रम के लोगों ने सिरल का अंतिम संस्कार सनातन परंपरा के अनुसार ही किया।