हिमशिखर खबर ब्यूरो
नई टिहरी: स्वामी रामतीर्थ परिसर बादशाहीथौल में जन्तु विज्ञान विभाग की पहल पर जलीय जैव आनुवांशिक संसाधनों के प्रबंधन एवं संरक्षण विषय पर व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया गया। जिसमें जलीय जैव विविधता संरक्षण पर व्याख्यान दिए गए।
जन्तु विज्ञान विभाग सभागार में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान मुंबई के पूर्व कुलपति प्रो० लाकड़ा ने भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के अंतर्गत आने वाले देश के विभिन्न केंद्रीय मत्स्य अनुसन्धान संस्थानों सी. एम. एफ. आर. आई. कोच्चि, एन.बी.एफ.जी.आर. लखनऊ, सी.आई.एफ.ए. भुबनेश्वर, सी.आई.एफ.आर.आई. बरैकपोर, डी. सी. एफ. आर. भीमताल द्वारा भारतीय मत्स्य सम्पदा के विकास, संवर्धन एवं उनके संरक्षण हेतु किये जा रहे प्रयासों को विस्तार से बताया। कहा कि मत्सय एवं अन्य जलीय प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए जलीय आनुवंशिक संसाधनों का जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग एवं मत्सय प्रजनन शोध कार्यक्रमों द्वारा प्रभावी प्रबंधन किया जाना आवश्यक है। पारिस्थितिक स्थिरता के लिए भी मत्सय आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण किया जाना बहुत आवश्यक है। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में सजावटी मछली की खेती को बढ़ावा दे कर न केवल मत्सय जैव विविधता संरक्षण किया जा सकता है। बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी सुदृढ़ किया जा सकता है। प्रो० लाकड़ा ने संश्लेषिक (कृत्रिम) मत्सय माँस के उत्पादन, मत्सय ऊतक और मत्सय सेल लाइन पर अनुसंधान किये जाने के संभावनाओं के विषय में भी जानकारी दी। जो बढ़ती वैश्विक खाद्य मांग की समस्या को हल करने में भी सहायक है। गढ़वाल विश्वविद्यालय के जन्तु विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. जे. पी. भट्ट द्वारा जन्तु विज्ञान के क्षेत्र में अपने शैक्षिक एवं शोध अनुभवों को पी०जी० एवं शोध छात्रों से साझा कर उन्हें जन्तु विज्ञान विषय में उन्नत शोध करने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड सरकार के मत्स्य विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. बी. पी. मधवाल एवं डॉ. आर. सी. पोखरियाल ने छात्रों को उत्तराखंड में मत्स्य विभाग की शासन की योजनाओ, निति की जानकारी दी।
एस. आर. टी० परिसर के निदेशक प्रो० ए० ए. बौड़ाई ने अपने सम्बोधन में सभी आमंत्रित वैज्ञानिको को उनके व्याख्यान के लिए आभार व्यक्त किया एवं प्रोफेसर एन के अग्रवाल को आमंत्रित व्याख्यान श्रृंखला में विश्व के शीर्ष मत्स्य वैज्ञानिक प्रो लाकरा को मुख्य वक्ता के रूप में और उत्तराखंड सरकार के पूर्व मत्स्य निदेशकों को कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए बधाई देते हुए विभागीय शिक्षकों से आगे भी इस प्रकार के कार्यक्रम करते रहने का अनुरोध किया। जन्तु विज्ञान विभाग के प्रो० एन० के० अग्रवाल ने कहा की कहा की जलवायु परिवर्तन जलीय जैव विविधता के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है। यह जंतुओं के आवास और प्रजातियों के वितरण को प्रभावित करता है, इसलिए जलीय पारिस्थितिक तंत्र और उनकी आनुवंशिक विविधता का संरक्षण पहले से कहीं अधिक जरूरी हो जाता है।
व्याख्यान श्रृंखला में विभागाध्यक्ष प्रोफसर डी. के. शर्मा ने आमंत्रित वैज्ञानिको का आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ० रविन्द्र सिंह एवं डॉ. आशीष डोगरा ने आमंत्रित वैज्ञानिकों को धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम में शोध छात्रों राजीव, ज्योति, तृप्ति, श्रुति, पूनम एवं यूजी पीजी के समस्त छात्र- छात्राओं का सक्रिय रूप से प्रतिभाग करने कि सहराना की। कार्यक्रम में स्नातकोत्तर के छात्र आरव शर्मा, सृस्टि बंगवाल, शिखा चतुर्वेदी, आर्या सिंह का विशेष सक्रिय सहयोग रहा।