पंडित हर्षमणि बहुगुण
प्रसंग उस समय का है जब एक बार ऋषि मंडल बैठा हुआ था। वर्तमान युग में आसन्न विभीषिकाओं पर विचार विमर्श किया जा रहा था। विचार विमर्श के क्रम में प्रश्न उभरा कि — मनुष्य के समझ इस युग में सबसे बड़ा संकट क्या है? इस जिज्ञासा का समाधान वहां उपस्थित ऋषि प्रवर ने किया।
उन्होंने कहा- ” इस युग का सबसे विषम संकट प्रत्यक्ष वाद और परिणामों को प्राप्त करने की त्वरित आकांक्षा ही है। कार्य करने से पूर्व ही मानव लाभ की सोचता है और उसे पाने के लिए किसी भी सीमा तक उतरने के लिए तत्पर हो जाता है।
आदर्शों और मूल्यों का स्थान चालबाजी और कुचक्र (मत्सर) ने ले लिया है और अधिकाधिक मानव इस अनैतिकता को ही जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य मानते हैं। इतना ही होता तो भी सहन किया जा सकता था परन्तु प्रत्यक्ष वाद ने शरीर और विलास- वैभव को प्राथमिकता दे दी है।
जो दिखाई देता है वही सत्य माना जाय तो आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर कोई किस तरह विश्वास करेगा? सत्य, धर्म और न्याय के पथ पर चलने का कौन साहस दिखाएगा?
सबकी जिज्ञासा का समाधान हुआ एवं ऋषि गणों ने संकल्प लिया कि उनकी तप की उर्जा मानवों में सात्त्विकता का बोध जगाएगी एवं सुर- दुर्लभ इस मानव तन को इसी तरह नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। आज आवश्यकता है कि हम कर्म पर विश्वास करें, फल को ईश्वर के अधीन छोड़ दें तो यही होगा सफलता का प्रमुख सूत्र। आइए इसी सूत्र पर चिन्तन कर मानव जीवन सफल करें