माह माघ का प्रारंभ 15 जनवरी से हो गया है। माघ मास में स्नान और दान का काफी महत्व होता है। माघ मास में भगवान श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस महीने में ढेर सारे धार्मिक पर्व आते हैं।
हिमशिखर धर्म डेस्क
हिन्दू कैलेंडर में भी अंग्रेजी कैलेंडर की तरह 12 महीने होते हैं। महीने में दो पखवाड़े 15-15 दिन के होते है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष के बाद अमावस्या आती है और शुक्लपक्ष के बाद पूर्णिमा। हर महीने का अपना एक महत्व है, और सभी महीने के अपने त्यौहार और पर्व है। हिन्दी कैलंडर के अनुसार माघ का महीना ग्यारहवां महीना होता है। माघ मास की पूर्णिमा को चंद्रमा मघा व अश्लेशा नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को माघ मास कहा जाता है। माघ मास की पूर्णिमा ‘‘माघ’’ नाम के तारों के समूह के आसपास होती है। माघ मास में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए माघी पूर्णिमा का भी बड़ा महत्व है। माघ मास 15 जनवरी से आरंभ हो चुका है।
माघ के महीने को स्नान-दान और तप के लिए बहुत महत्वपूर्ण महीना माना गया है। माघ महीने में सूर्य देव, मां गंगा और भगवान विष्णु, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य मिलता है। वही भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति को सारे पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है।
इस तरह पूरे महीने में भगवान विष्णु की पूजा करने से दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि रहती है। माघ की ऐसी महिमा है कि इसमें जहां कहीं भी जल हो, वो गंगाजल के समान होता है। फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है।
महाभारत में माघ महीने का महत्व
महाभारत और अन्य ग्रंथों में माघ मास के महत्व के बारे में बताया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार जो माघ मास में नियम से एक वक्त खाना खाता है, वो धनवान कुल में जन्म लेकर अपने परिवार में महत्वपूर्ण होता है। इसी अध्याय में कहा गया है कि माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है और वह अपने कुल का उद्धार करता है।
माघ मास की कथा
प्राचीन काल में नर्मदा किनारे सुव्रत नाम का ब्राह्मण रहता था। वो वेद, धर्मशास्त्रों और पुराणों के जानकार थे। कई देशों की भाषाएं और लिपियां भी जानते थे। इतने विद्वान होते उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग धर्म के कामों में नहीं किया। पूरा जीवन केवल धन कमाने में ही गवां दिया।
जब वो बूढ़े हुए तो याद आया कि मैंने धन तो बहुत कमाया, लेकिन परलोक सुधारने वाला कोई काम नहीं किया। ये सोचकर दुखी होने लगे। उसी रात चोरों ने उनका धन चुरा लिया, लेकिन सुव्रत को इसका दु:ख नहीं हुआ क्योंकि वो तो परमात्मा को पाने का उपाय सोच रहे थे। तभी सुव्रत को एक श्लोक याद आया-
माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।
उनको अपने उद्धार का मूल मंत्र मिल गया। फिर उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और नौ दिनों तक सुबह जल्दी नर्मदा के पानी में स्नान किया। दसवें दिन नहाने के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सुव्रत ने जीवन भर कोई अच्छा काम नहीं किया था, लेकिन माघ में स्नान के बाद उनका मन निर्मल हो चुका था। जब उन्होंने प्राण त्यागे तो उन्हें लेने दिव्य विमान आया। उस पर बैठकर वो स्वर्ग चले गए।