पंडित उदय शंकर भट्ट
आज माघी पूर्णिमा है। शास्त्रों में इस दिन स्नान, दान के साथ व्रत- उपवास करना विशेष फलदायी बताया गया है। पिछले एक माह से नियमित माघ स्नान कर रहे श्रद्धालुओं का यह स्नान माघी पूर्णिमा के साथ संपन्न हो जाएगा।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन तीर्थ स्नान और दान करने से बत्तीस गुना पुण्य फल मिलता है। इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहते हैं। पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु और चंद्र देव को समर्पित की जाती है।
स्नान-दान का महापर्व
मकर संक्रांति की तरह इस दिन भी तिल दान का विशेष महत्व है। माघ पूर्णिमा गंगा-यमुना के किनारे संगम पर चल रहे कल्पवास का आखिरी दिन होता है। इस दिन पूरे महीने की तपस्या के बाद शाही स्नान के साथ कल्पवास खत्म हो जाता है। इसलिए धार्मिक नजरिये से माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। स्नान-दान की सभी तिथियों में इसे महापर्व कहा जाता है।
इन चीजों के दान का विशेष महत्व
इस पर्व में यज्ञ, तप और दान का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा, पितरों का श्राद्ध और जरूरतमंद लोगों को दान करने का विशेष फल है। जरूरतमंद को भोजन, वस्त्र, तिल, कंबल, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न, पादुका आदि का दान करना चाहिए।
सूर्य और चंद्र पूजा का विधान
सूर्य पूजा: ये पर्व माघ महीने का आखिरी दिन होता है। माघ में की गई सूर्य पूजा से रोग और दोष दूर हो जाते हैं। इसलिए इस महीने के खत्म होते वक्त सुबह जल्दी उठकर भगवान सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। उत्तरायण के चलते इस दिन उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने से उम्र बढ़ती है और बीमारियां खत्म होती हैं। इस दिन स्नान के बाद ऊँ घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
चंद्रमा पूजा:
ग्रंथों में बताया गया है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा को दिया गया अर्घ्य पितरों तक पहुंचता है। जिससे पितृ संतुष्ट होते हैं। माघ महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा अपने मित्र सूर्य की राशि में रहेगा। इसलिए इसका प्रभाव बढ़ जाएगा। विद्वानों का कहना है कि नीरोगी रहने के लिए इस दिन औषधियों को चंद्रमा की रोशनी में रखकर अगले दिन खाना चाहिए। ऐसा करने से बीमारियों में राहत मिलने लगती है।