हिमशिखर खबर ब्यूरो
आज शनिवार को एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि का संयोग होने से त्रिस्पर्शा योग बनेगा। इसके साथ ही पूरे दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी रहेगा। इस महायोग में किए गए स्नान-दान, व्रत और पूजा-पाठ से तीन गुना पुण्य फल मिलता है। साथ ही जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। स्कंद, नारद और ब्रह्मवैवर्त पुराण में इसका महत्व बताते हुए कहा गया है कि द्वादशी पर किए गए धार्मिक अनुष्ठानों से कभी न खत्म होने वाला पुण्य फल मिलता है।
कैसे बन रहा है त्रिस्पर्शा योग
जब सूर्योदय के समय यानी सूर्योदय से कुछ मिनटों पहले एकादशी हो, फिर पूरे दिन द्वादशी रहे और उसके बाद त्रयोदशी तिथि हो तो ये त्रिस्पर्शा द्वादशी कहलाती है। ये द्वादशी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी – तीनों तिथियां एक ही दिन में आ जाने से त्रिस्पर्शा होती हैं। इस महायोग में व्रत-उपवास, स्नान-दान और भगवान विष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
द्वादशी तिथि का महत्व
ग्रंथों में हर द्वादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने का महत्व बताया गया है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के 12 नामों से पूजा करनी चाहिए। साथ ही ब्राह्मण भोजन या जरूरतमंद लोगों को अन्नदान करना चाहिए। ऐसा करने से हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं और कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है। पुराणों के मुताबिक इस तिथि के शुभ प्रभाव से सुख-समृद्धि बढ़ती है और मोक्ष मिलता है।
त्रिस्पर्शा महाद्वादशी की पूजा विधि
1. सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ जल में तिल मिलाकर नहाना चाहिए। इसके बाद भगवान श्री विष्णु का ध्यान करते हुए पूजा करनी चाहिए।
2. भगवान विष्णु को धूप-दीप दिखाकर रोली और अक्षत चढ़ाएं। पूजा के बाद व्रत-कथा सुनें। इसके बाद आरती करें और प्रसाद बांट दें।
3. त्रिस्पर्शा महाद्वादशी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए। व्रत खोलते समय चावल खाने से बचें।