हिमशिखर धर्म डेस्क
‘बड़े सपने देखना चाहिए और उन्हें पूरे भी करना चाहिए।’ ऐसा प्रबंधन की भाषा में समझाया जाता है। लेकिन, अध्यात्म यहां थोड़ा अलग ढंग से बात करते हुए कहता है, सपना न बड़ा होता है, न छोटा। न ही वह सच या झूठ होता है। लेकिन, फिर भी आता तो है। और, यदि झूठ है तो फिर दिखता क्यों है। दरअसल इसमें सच है देखने वाला। जो व्यक्ति सपना देख रहा है, वही सत्य है।
सपना सत्य नहीं है। हम अपने मनुष्य होने के सत्य को जितना अधिक जान जाएंगे, उसी को कहेंगे सपने को पूरा करना। इसीलिए कहा यूं जाता है कि सपने जरूर देखो, ताकि उनको पूरा करने के लिए पुरुषार्थ कर सकें। पुरुषार्थ को प्रेरित करने के लिए एक ऐसा झूठ जो सच जैसा है, पर सच है नहीं, उससे मनुष्य को जोड़ दिया जाता है। मनुष्य हमेशा कुछ न कुछ चाहता है।
उसका मन सदैव ही कुछ मांगता है, तो उसे सपनों के गलियारों से गुजरने में बड़ी सुविधा हो जाती है। यदि सफल हो जाए तो फिर सारी दुनिया तारीफ करती है। हम लोगों की आदत पड़ गई है परिणाम की प्रशंसा करने की। यह प्रयोग बच्चों के मामले में बिलकुल मत करिएगा।
ध्यान रखें, प्रशंसा करना हो तो प्रयासों की करना, परिणाम की नहीं, क्योंकि बच्चे सपने देखते नहीं, सपनों की दुनिया में रहते हैं। यदि उनको परिणाम से ही जोड़ दिया तो वे और उनके सपने दोनों टूट जाएंगे।