जीवन का मन्त्र : पापकर्म और हमारी पीड़ाएं

पंडित हर्षमणि बहुगुण

Uttarakhand

हम अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि मैंने कभी कोई बुरा काम नहीं किया फिर भी मैं बीमारियों से परेशान हूँ। ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा हैं। क्या ‘भगवान बहुत कठोर और निर्दयी हैं’ ?

पहली बात तो हमें यह समझ लेनी चाहिए कि हमारे कार्यों और भगवान का कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए हमें अपनी परेशानियों और पीड़ाओं के लिए ईश्वर को दोषी नहीं मानना चाहिए।

यदि आप सहिष्णु हैं तो आप जीवन में संपन्न और सुखी रहते हैं। यदि आप लोगों को सताते हैं या पाप कर्म करते हैं तो आप पीड़ित होते हैं और तरह-तरह की बीमारियाँ कष्ट देती हैं। हमारे कार्यों का हम पर निश्चित रूप से असर होता है। कभी हमारे कर्मों का प्रभाव इसी जन्म में तो कभी अगले जन्म में मिलता हैं लेकिन मिलता जरुर है। आशय यह है कि हम अपने कर्मों के प्रभाव से कभी मुक्त नहीं होते यह बात अलग है कि इसका प्रभाव तुरंत दिखाई न दे।

 इस चर्चा में इस बात का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है कि हमारे पाप हमें किस रूप में लौटकर मिलते हैं और पीड़ित करते हैं। यदि हम किसी रोग से पीड़ित है तो ये समझें कि हमने अवश्य ही कोई पाप कर्म पूर्व जन्म में किया है। गरूड़ पुराण के अनुसार व्यक्ति को पाप कर्म द्वारा होने वाली कुछ बीमारियों को सांकेतिक रूप में नीचे दिया जा रहा है।

1— लोगों का धन लूटने वाले व्यक्तियों को गले की बीमारी से पीड़ित होना पड़ता है।

2– पढ़े लिखे ज्ञानी जन के प्रति दुर्भावना से काम करने वाले व्यक्ति को सिरदर्द की शिकायत रहती है।

3– हरे पेड़ काटने वाले और सब्जियों की चोरी करने वाले व्यक्ति को अगले जन्म में शरीर के अन्दर अल्सर (घाव) से पीड़ा होती है।

4– झूठे और धोखाधड़ी करने वाले लोगों को उल्टी की बीमारी होती है।

5– गरीब लोगों का धन चुराने वाले को कफ और खांसी से कष्ट होता है।

6– यदि कोई समाज के श्रेष्ठ पुरुष (विद्वान) की हत्या कर देता है तो उसे तपेदिक रोग होता है।

7– गाय का वध करने वाले कुबड़े बनते हैं।

8– निर्दोष व्यक्ति का वध करने वाले को कोढ़ होता है।

9– जो अपने गुरु का अपमान करता है उसे मिर्गी का रोग होता है।

10– वेद और पुराणों का अपमान और निरादर करने वाले व्यक्ति को बार बार पीलिया होता है।

11— झूठी गवाही देने वाले व्यक्ति गूंगे हो जाते हैं।

12– पुस्तकों और ग्रंथो की चोरी करने वाले व्यक्ति अंधे हो जाते हैं।

13– गाय और विद्वानों को लात मरने वाले व्यक्ति अगले जन्म में लंगड़े बनते हैं।

14— वेदों और उसके अनुयायियों का निरादर करने वाले व्यक्ति को किडनी रोग होता है।

15– दूसरों को कटु वचन बोलने वाले अगले जन्म में हृदय रोग से कष्ट पाते हैं।

16— जो सांप, घोड़े और गायों का वध करता है वह संतानहीन होता है।

17– कपड़े चुराने वालों को चर्म रोग होते हैं।

18– परस्त्रीगमन करने वाला अगले जन्म में कुत्ता बनता है।

19– जो दान नहीं करता है वह गरीबी में जन्म लेता है।

20— आयु में बड़ी स्त्री से सहवास करने से डायबिटीज रोग होता है ।

21— जो अन्य महिलाओं को कामुक नजर से देखता है उसकी आंखें कमजोर होती हैं।

22— नमक चुराने वाला व्यक्ति चींटी बनता है।

23– जानवरों का शिकार करने वाले बकरे बनते हैं।

24– जो ब्राह्मण होकर गायत्री मंत्र नहीं पढ़ता/ जपता वो अगले जन्म में बगुला बनता है।

25– जो ज्ञानी और सदाचारी पुरुषों को दिए गए अपने वचन से मुकर जाता है वह अगले जन्म में गीदड़ बनता है।

26— जो दुकानदार नकली माल बेचते हैं वे अगले जन्म में उल्लू बनते हैं।

27— जो अपनी पत्नी को पसंद नहीं करते वो खच्चर बनते हैं।

28– जो व्यक्ति अपने माता पिता और गुरुजनों का निरादर करता है उसकी गर्भ में ही हत्या हो जाती है।

29— मित्र की पत्नी से सम्बन्ध बनाने की इच्छा रखने वाला अगले जन्म में गधा बनता है।

30– मदिरा का सेवन करने वाला व्यक्ति भेड़िया बनता है।

31– जो स्त्री अपने पति को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ भाग जाती है वह घोड़ी बन जाती है।

‘ *पूर्व जन्म में किये गए पापों से उत्त्पन्न रोग कैसे दूर हों ?* ‘

*पूर्व जन्मार्जितं पापं व्याधि रूपेण व्याधिते*,

*तत्छन्ति: औषधनैधान्ये: जपहोमा क्रियादिभी:* ।।

 पूर्व जन्म के जो पाप हमें रोग के रूप में आकर पीड़ित करते हैं उनका निराकरण करने के लिए दवाइयां, दान, मंत्र जप, पूजा, अनुष्ठान करने चाहिए। केवल यह ही नहीं हमें गलत काम करने से भी बचना चाहिए। तभी हम पूर्वजन्म कृत पापों के दुष्प्रभाव से मुक्त हो सकेंगे।

  पाप कर्म दो तरह से होते हैं। एक जानबूझकर और दूसरे अनजाने में, जानबूझकर किए कर्मों की सजा अवश्य मिलती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *