नीम करोली बाबा के चमत्कार: चमत्कारिक ‘बुलेटप्रूफ कंबल’

नीम करोली बाबा के लाखों भक्त हैं। उनके भक्त भारत से विदेशों तक फैले हैं।  एप्पल के सीईओ से लेकर फेसबुक के संस्थापक जैसी हस्तियां बाबा का अलौकिक आशीर्वाद ले चुकी हैं। उनके भक्तों के साथ बाबा के जीवन काल में या उनके जाने के बाद, कुछ अलौकिक दिव्य चमत्कारिक अनुभव हुए हैं। 

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हिमशिखर धर्म डेस्क

रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ नामक एक किताब लिखी इसी में ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा के कई भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे। यह घटना 1943 की है। एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।

दोनों बुजुर्ग दंपत्ति भी सो गए, लेकिन क्या नींद आती। महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में उन्हें कैसे नींद आती। वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और चादर को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।

जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।

लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौट आया। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपत्ति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई।

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उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रात भर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।

गूंगा लड़का भी बोलने लगा (2)

बाबा सभी को ‘ तू ‘ या ‘ तुम ‘ कहते थे और अपने बारे में ‘ हम ‘शब्द का प्रयोग करते थे। एक दिन उपस्थित लोगों से बातचीत करते हुए सहसा पास बैठे श्यामसुन्दर शर्मा से उन्होंने कहा – “तू बगिया चला जा” अभी कोई नीम करौली बाबा को खोजता हुआ आएगा। उसके साथ एक गूँगा – बहरा लड़का होगा। उनसे कहना कि यहाँ कोई आबा – बाबा नहीं हैं। जा , तेरा गूँगा – बहरा लड़का ठीक हो जाएगा। इसके अलावा और जो मन में आए कह देना।”

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शर्मा जी तुरन्त बाहर आए। फाटक के पास पहुँचते ही एक कार आकर डाक बंगले के पास रुक गई। उसमें से एक सज्जन उतरे और कहा- ” मैं फिरोजाबाद का सिविल सर्जन डॉ . बेग हूँ । पता चला है कि इस बंगले में नीम करौली बाबा ठहरे हैं। उनसे मिलना चाहता हूँ। मेरा यह लड़का पैदाइशी गूँगा – बहरा है। काफी इलाज किया गया, पर ठीक नहीं हुआ। बाबा का आशीर्वाद मिल जाए तो ठीक हो जाएगा। ” शर्मा जी ने बाबा के निर्देशानुसार सारी बातें कहने के बाद अज्ञानतावश लड़के की ओर देखते हुए पूछा- “क्या नाम है तुम्हारा ? ” – डॉ . बेग कुछ कहते, उसके पहले ही लड़के ने अस्पष्ट स्वर में अपना नाम बताया। डॉ . बेग चौंक उठे। ” शर्माजी ने कहा- ” आपका लड़का बोलता तो है और सुन भी लेता है। घबराने की जरुरत नहीं जल्द ठीक हो जाएगा। “

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