रविदास जी भारत के उन विशेष महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने अपने आध्यात्मिक वचनों से सारे संसार को आत्मज्ञान, एकता, भाईचारा पर जोर दिया। रविदास जी की अनूप महिमा को देख कई राजा और रानियाँ इनकी शरण में आकर भक्ति मार्ग से जुड़े। जीवन भर समाज में फैली कुरीति के अन्त के लिए काम किया।
हिमशिखर धर्म डेस्क
संत रविदास अपनी झोपड़ी में बैठकर जूते बनाने का काम कर रहे थे। उन्हें संत रैदास के नाम से भी जाना जाता है। इस काम से उन्हें जो कुछ भी मिल जाता, उससे जीवन यापन कर रहे थे, वे अपनी कमाई से संतुष्ट रहते थे।
एक दिन एक सज्जन आदमी उनकी झोपड़ी पर आया। उसने देखा कि रैदास एक सच्चे संत हैं। आदमी ने विचार किया कि मुझे इनकी कुछ मदद करनी चाहिए। उसने अपनी झोली में से एक पत्थर निकाला और संत रैदास से बोले, ‘रैदास जी, ये पारस पत्थर है। दुर्लभ है, मुझे कहीं से मिला है। अब मैं ये आपको देना चाहता हूं। इसकी विशेषता है कि ये लोहे को सोना बना देता है।’
सज्जन आदमी ने एक लोहे का टुकड़ा लिया और पारस पत्थर से उसे छूआ तो वह लोहे का टुकड़ा सोने का हो गया। सज्जन आदमी को लगा कि ये पत्थर संत रैदास जी स्वीकार कर लेंगे।
संत रैदास बोले, ‘साधु बाबा, इसे आप अपने पास ही रखें। मैं मेहनत से जितना कमाता हूं, वह मेरे लिए काफी है। जो मेहनत की कमाई है, उसका मजा ही कुछ और है।’
साधु ने बार-बार पत्थर रखने के लिए निवेदन किया तो संत रैदास बोले, ‘अगर आप ये पत्थर नहीं रखना चाहते हैं तो इसे यहां के राजा को दे दीजिए। यहां का राजा बहुत गरीब है। उसे हमेशा धन की जरूरत रहती है या फिर किसी ऐसे गरीब मन वाले को खोजो जो है तो धनी, लेकिन वह धन के लिए पागल हो, उसे ये पत्थर दे दो।’
ऐसा कहकर संत रैदास जी अपने काम लग गए। तब उस सज्जन को समझ आया कि सच्चा संत कैसा होता है।
सीख – संत रैदास का स्वभाव हमें सीख देता है कि धन कमाने के लिए कभी भी शार्टकट नहीं अपनाना चाहिए। ईमानदारी और परिश्रम से धन कमाएंगे तो उस धन को भोगने का आनंद ही अलग होता है।