हिमशिखर धर्म डेस्क
फाल्गुन मास को रंगों का महीना भी कहा जाता है। इस महीने ऋतुराज वसंत के आगमन से प्रकृति की सुंदरता को चार चांद लग जाते है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक नए साल का पहला महीना चैत्र और आखिरी फाल्गुन जाते-जाते सर्द ऋतु को ले जाता है और वसंत जैसे सुहावने मौसम के साथ हिंदी नव वर्ष की शुरुआत होती है। फाल्गुन महीना प्रकृति के नज़रिये से जितना महत्वपूर्ण है उतना ही इसका धार्मिक महत्व भी है। आप सभी जानते ही होंगे कि- महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनायी जाती है।
शिवरात्रि और होली फाल्गुन में ही
फाल्गुन महीने के शुरुआती 13 दिन बाद शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। ये पर्व चौदहवीं तिथि यानी कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर मनाया जाता है। पुराणों के मुताबिक इस तिथि पर ही भगवान शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। इसके बाद फाल्गुन महीने के खत्म होने पर यानी आखिरी दिन होलिका दहन के बाद रंगो का त्योहार मनाते हैं।
शास्त्रोक्त मान्यता है कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी। इस कारण इस दिन चंद्रमा की विशेष आराधना कर चंद्रमा से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है।
मौसम में अच्छे बदलाव
फाल्गुन महीने में ही पतझड़ के बाद वसंत आता है। जिससे प्रकृति में सकारात्मक बदलाव होने लगते हैं। जो मन को भाते हैं। वसंत ऋतु काल सेहत के लिए बहुत अच्छा समय माना गया है। आयुर्वेद का कहना है कि इस मौसम में ही शरीर में ताकत बढ़ती है। साथ ही शरीर के तीन दोष यानी वात, पित्त और कफ में बैलेंस बना रहता है। इसलिए फाल्गुन को सुखद महीना भी कहा जाता है।
भगवान विष्णु और श्री कृष्ण आराधना का महीना
इस हिंदी महीने में भगवान विष्णु की आराधना करने से उनकी कृपा मिलती है। साथ ही भगवान श्री कृष्ण की आराधना विभिन्न तरह के सुगंधित फूलों से करने का विधान बताया गया है। फाल्गुन में श्री कृष्ण की पूजा करने से समृद्धि और सुख बढ़ता है। इस महीने में शंख में सुगंधित जल और दूध भरकर भगवान का अभिषेक करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस महीने भगवान श्री कृष्ण को माखन-मिश्री का नैवेद्य लगाने से आरोग्य और समृद्धि मिलती है।