मुक्ति की देवी हैं मां सरस्वती, ज्ञान और चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं

स्वामी कमलानंद

Uttarakhand

पूर्व सचिव, भारत सरकार


हिमशिखर धर्म डेस्क

सनातन धर्म में बसंत पंचमी पर्व का विशेष महत्व है। बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इसी दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इसे देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज 14 फरवरी, बुधवार को ये तिथि पड़ रही है।  इस पर्व को बसंत ऋतु के आने का सूचक माना गया है। इस विशेष दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

देवी सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। सरस्वती जी भगवान की योग माया शक्ति है। जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। सरस्वती माँ के अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि कई नामों से जाना जाता है। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। ये तीन मुख्य आदि शक्तियों या त्रिदेवियों में से एक शक्ति हैं। इनकी आराधना से कोई भी व्यक्ति परम ज्ञान प्राप्त कर सकता है। विद्या आरंभ से पहले मां सरस्वती की ही पूजा-आराधना की जाती है, क्योंकि इन्हीं की कृपा से कोई भी व्यक्ति विद्या ग्रहण करने में सक्षम हो पाता है।
सरस्वती साहित्य, संगीत, कला की देवी है, जो विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है।
मां सरस्वती केवल ज्ञान ही नहीं देतीं, बल्कि अच्छी वाणी, कला में निपुणता, तेज बुद्धि और शांति भी देती हैं। बुद्धि और ज्ञान के बिना धन-संपत्ति भी व्यर्थ है, वह ज्यादा देर तक पास में नहीं टिक सकता। बुद्धिबल से कितनी ही बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।

मां सरस्वती की पूजा करने से व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुद्धि का संचरण होता है। ऐसा कहा जाता है कि जहां मां सरस्वती विराजमान रहती हैं। उस जगह मां लक्ष्मी अवश्य वास करती हैं। वैदिक काल में सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण जी ने मां शारदे की पूजा आराधना की थी। इन्हें संगीत की देवी भी कहा जाता है।

वसंत पंचमी के साथ ही ऋतुराज वसंत का आगमन भी हो जाएगा। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का पूजन करने से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इसे देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत, कला, विज्ञान और शिल्प कला की देवी माना जाता है। ज्ञान प्राप्ति और अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की उपासना की जाती है। इस दिन शिक्षाविद् और छात्र मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान बनाने की प्रार्थना करते हैं।

इस दिन पीले कपड़े धारण कर पीली वस्तुओं से देवी सरस्वती का पूजन करने का विधान है। इस दिन गंगा स्नान के बाद दान का विशेष महत्व है। वसंत पंचमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरूआत के लिए उत्तम माना जाता है।

कैसा है देवी सरस्वती का स्वरूप

देवी सरस्वती के एक मुख और चार हाथ हैं। मां एक हाथ में वीणा, एक हाथ में माला, एक हाथ में पुस्तक और एक हाथ आशीष देते हुए है। देवी सफेद वस्त्र धारण किए कमल पर विराजमान होती हैं। इनका वाहन हंस है। इसलिए इन्हें हंसवाहिनी भी कहा जाता है। किसी भी शैक्षणिक कार्य में सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा करने का महत्व है।

धर्म-ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती के स्वरूप की विशेषताएं

  • कई पुराणों में देवी सरस्वती के वाग्देवी स्वरूप में चार भुआओं और आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है।
  • स्कंद पुराण में देवी सरस्वती के स्वरूप की विशेषताओं को लेकर बताया गया है कि, ये कमल के आसन पर सुशोभित, जटायुक्त, माथे पर अर्धचंद्र धारण किए होती हैं।
  • धर्मिक मान्यता है कि देवी सरस्वती अदृश्य और अत्यंत सूक्ष्म रूप में मनुष्य के जिव्हा पर विराजती हैं. कहा जाता है कि जिस समय देवी सरस्वती का वास जिव्हा पर होता है, उस दौरान बोले गए शब्द सत्य हो जाते हैं।
  • इनका वाहन हंस होने के कारण, इन्हें हंसवाहिनी भी कहा जाता है. हालांकि कुछ स्थानों पर देवी सरस्वती को मयूर यानी मोर पर सवार दिखाया गया है। 

सरस्वती का प्राकट्य दिवस ऐसे बना वसंत पंचमी

माघ मास की पंचमी पर देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। देवी के प्रकट होने पर सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की थी। सभी देवता आनंदित थे। इसी आनंद की वजह से बसंत राग बना। संगीत शास्त्र में बसंत राग आनंद को ही दर्शाता है। इसी आनंद की वजह से देवी सरस्वती के प्रकट उत्सव को वसंत और बसंत पंचमी के नाम से जाना जाने लगा।

वसंत पंचमी पर पीले रंग का क्या है महत्व

वसंत पंचमी पर पीला रंग इस बात का द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं और पीले फूल भी खिलने लगते हैं। इसलिए वसंत पंचमी पर्व पर पीले रंग के कपड़े और पीला भोजन करने का बहुत ही महत्व है। वसंत का पीला रंग समृद्धि, ऊर्जा, प्रकाश और आशावाद का प्रतीक है। इस पर्व के साथ शुरू होने वाली वसंत ऋतु के दौरान फूलों पर बहार आने से खेतों में सरसों सोने की तरह चमकने लगता है। साथ ही जौ और गेहूं की बालियां खिल उठती हैं।

वसंत पंचमी का वैज्ञानिक महत्व

शरद ऋतु की ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्य के अंत:करण की अग्नि एवं सूर्य देव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है। वसंत ऋतु में प्रकृति पूरे दो महीने तक वातावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित बनाकर संपूर्ण जीवों को जीने का मार्ग प्रदान करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *