मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस आज:बसंत पंचमी का मुहूर्त, पूजा विधि और कथा जानिए

हिमशिखर खबर ब्यूरो।

Uttarakhand

प्रतिवर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी पर्व मनाई जाती है। आज सुबह सूर्योदय के समय की कुंडली के पंचम भाव में राहु है, इस कारण बुद्धिवर्धक योग बन रहा है। इसके साथ ही भारती योग भी है। भारती भी देवी सरस्वती का एक नाम है। इनके अलावा बुधादित्य, सिद्धि, शश, शुभकर्तरी और सत्किर्ती नाम के शुभ योग भी बसंत पंचमी पर बन रहे हैं। कुल सात शुभ योगों की वजह से ये पर्व बहुत खास हो गया है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां सरस्वती का प्राकट्य  हुआ था, इसलिए बसंत पंचमी मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। मां सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है और बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा से ज्ञान प्राप्ति होती है। साथ ही बसंत पंचमी के दिन बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है।

बसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त होता है, जिसमें कि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इसमें विवाह, सगाई, यज्ञोपवीत, भवन निर्माण, विद्यारंभ संस्कार इत्यादि किए जा सकते हैं।

मुहूर्त बसंत पंचमी 2022

देवी सरस्वती की पूजा के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा रहता है। इसलिए सरस्वती पूजन दोपहर 12.20 से पहले कर लें। अगर किसी वजह से इस समय में पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो दोपहर में 3.20 बजे से शाम 5.50 बजे तक देवी पूजा की जा सकती है। पंचमी तिथि, शनिवार 5 फरवरी को सुबह 03 बजकर 49 मिनट से प्रारंभ, अगले दिन 6 फरवरी, रविवार को प्रातः 03 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी।

सरस्वती प्रकट उत्सव को वसंत पंचमी क्यों कहते हैं?

माघ मास की पंचमी तिथि पर देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। देवी के प्रकट होने पर सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की गई थी। सभी देवता आनंदित थे। इसी आनंद की वजह से बसंत राग बना। संगीत शास्त्र में बसंत राग आनंद को ही दर्शाता है। इसी आनंद की वजह से देवी सरस्वती के प्रकट उत्सव को वसंत और बसंत पंचमी के नाम से जाना जाने लगा।

पूजा विधि

प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर संपूर्ण मंदिर व घर को स्वच्छ करें। स्नानादि के बाद सरस्वती की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर पीले वस्त्र धारण करवाएं श्रंगार अर्पित करें देवी सरस्वती के सम्मुख घी की अखंड अखंड ज्योति प्रज्वलित करें पीली वस्तुओं का भोग अर्पित करें पीले पुष्प अर्पित करें। देवी सरस्वती को ज्ञान की और वाणी की देवी कहा गया है अतः पुस्तकों और वाद्य यंत्रों का भी पूजन अवश्य करें।

ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः। मंत्र का 108 बार जप करें 11 जी के दीपक जला कर देवी सरस्वती की आरती करें। जरूरतमंदों को पुस्तक या शिक्षा से संबंधित वस्तुओं का दान करना अति शुभ कारक माना जाता है।

आइए जानते हैं बसंत पंचमी की कथा

सृष्टि रचना के दौरान भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया। पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगे। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।

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