हिमशिखर धर्म डेस्क
एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युग (कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) होते हैं, जिसमें इस वैवस्वत मन्वन्तर के 27 चतुर्युग सम्पूर्ण हो चुके हैं। अर्थात् यह 28 वां चतुर्युग का कलियुग चल रहा है।
हर चतुर्युग के द्वापरयुग में भगवान् विष्णु व्यासरूप ग्रहण करके एक वेद के अनेक विभाग करते है। वेदमेकं पृथक्प्रभुः। (श्रीविष्णुपुराण ३.३.७)
इस वैवस्वत मन्वन्तर में वेदों का पुनः-पुनः 28 बार विभाग हो चुका है।
अष्टविंशतिकृत्वो वै वेदो व्यस्तो सहर्षिभिः ।
वैवस्वतेन्तरे तस्मिन्द्वापरेषु पुनः पुनः ॥ (श्रीविष्णुपुराण ३.३.९ )
उन 28 व्यास मुनियों के नाम इस प्रकार हैं –
१. ब्रह्माजी,
२. प्रजापति,
३. शुक्राचार्य जी,
४. बृहस्पति जी,
५. सूर्य,
६. मृत्यु,
७. इन्द्र,
८. वसिष्ठ,
९. सारस्वत,
१०. त्रिधामा,
११. त्रिशिक,
१२. भरद्वाज,
१३. अन्तरिक्ष,
१४. वर्णी,
१५. त्रय्यारुण,
१६. धनंजय,
१७. क्रतुंजय,
१८. जय,
१९. भरद्वाज,
२०. गौतम,
२१. हर्यात्मा,
२२. वाजश्रवा मुनि,
२३. सोमशुष्मवंशी तृणबिन्दु,
२४. भृगुवंशी ऋक्ष जो वाल्मीकि कहलाये,
२५. शक्ति (पराशरजी के पिता),
२६. पराशरजी,
२७. जातुकर्ण,
२८. कृष्णद्वैपायन और अगले द्वापरयुग में द्रोणपुत्र अश्वत्थामा