आज से शारदीय नवरात्रि शुरू हो गई है। देवी पूजा का नौ दिवसीय पर्व 4 अक्टूबर तक चलेगा। नवरात्रि से जुड़े कुछ ऐसे सवाल हैं, जो कई लोगों के मन में उठते हैं, जैसे नवरात्रि बार-बार क्यों आती हैं, देवी पूजा का ये पर्व नौ दिनों तक ही क्यों मनाया जाता हैं? जानिए इन सवालों के जवाब-
हिमशिखर धर्म डेस्क
सनातन हिंदू धर्म में नवरात्र का अर्थ मात्र देवी पूजा तक ही सीमित नहीं, बल्कि इसके वैज्ञानिक आधार भी हैं। अक्सर यही होता है कि इस तरह के उत्सव को मात्र धार्मिक पहलू से ही देखते हैं, लेकिन इनके वैज्ञानिक आधार पर कभी सोचा नहीं जाता। सनातन हिंदू धर्म के तमाम पर्वों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक पहलू भी छिपा हुआ। जो हमारे जीवन, वातावरण से जुड़े हैं। देखने में आ रहा है कि ऋषि-मुनियों की ऐसी विज्ञान आधारित पहल और समझ का युवा पीढ़ी को कम ज्ञान है। नवरात्र का वैज्ञानिक पहलू आज के समय में ज्यादा महत्व रखता है क्योंकि पश्चिमी सभ्यता की आड़ में हमने अपनी जीवनशैली को, परंपराओं से हटकर, जिस तरह नए सिरे से तैयार किया है, वो हमारे लिए घातक सिद्ध हो रही है।
हिन्दू पंचांग के आश्विन माह की नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाती है। विज्ञान की दृष्टि से शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। वहीं चैत्र नवरात्र में दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि घटती है, ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़े, इसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया।खास बात यह भी है कि ये दो ही समय ऐसे होते हैं जब फसलों के उत्पादन में भी बड़ा परिवर्तन होता है।
इसीलिए कि ऋतु के बदलाव के इस काल में मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कर स्वयं को भीतर से सबल बना सके, ताकि मौसम के बदलाव का असर हम पर न पड़े। इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगत जननी की आराधना-उपासना की जाती है।
नवरात्रि पर्व के समय प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ जाता है। ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का साक्षात् रूप यही है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ वातावरण सुखद होता है। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंड रहती है न अधिक गर्मी। प्रकृति का यह रूप सभी के मन को उत्साहित कर देता है। जिससे नवरात्रि का समय शक्ति साधकों के लिए अनुकूल हो जाता है। तब नियमपूर्वक साधना व अनुष्ठान करते हैं, व्रत-उपवास, हवन और नियम-संयम से उनकी शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्ति जागती है, जो उनको ऊर्जावान बनाती है।
अब सवाल कि यह नौ दिन के क्यों रखे जाते हैं?
नौ दिन का मतलब यह भी है कि हमारी पृथ्वी के चारों तरफ नौ महत्वपूर्ण ग्रह रहे (अब विज्ञान ने नौवें ग्रह को निरस्त कर दिया पर मौजूदगी विद्यमान है) जिनका किसी न किसी रूप से हमारे शरीर से सीधा संदर्भ और संपर्क है। पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण पर टिकी हुई है और सभी तरह के ग्रह-उपग्रह इसी शक्ति से अपने-अपने स्थानों से व्यवहार करते हैं। इन नौ ग्रहों का हमारे शरीर पर भी गुरुत्वाकर्षण प्रभाव होता है। इसलिए नौ की संख्या को ज्यादा महत्व मिला है। नौ को एक संपूर्ण संख्या भी माना जाता है मतलब नौ की संख्या को जब हम किसी भी संख्या से गुणा करेंगे तो योग अंतत: नौ पर ही पहुंचेगा।
बदल जाती है आदत
बात मात्र यही नहीं कि यह भोजन के परिवर्तन से जुड़ा है बल्कि हर मौसम में शरीर का व्यवहार व मेटाबालिज्म अलग हो जाता है। इसमें नौ दिनों का भी अपना महत्व होता है क्योंकि नौ दिनों में किसी भी शरीर का डिटाक्सिफिकेशन पर्याप्त रूप से हो जाता है। मतलब जब हमारे भोजन में परिवर्तन होता है तो शरीर को अवसर दिया जाना चाहिए कि वो नए भोजन के लिए तैयार हो और उसके लिए जो पूर्व में लिया गया भोजन हो, उससे जुड़े तमाम तरह के विषैले पदार्थों से मुक्त होने के लिए नौ दिन चाहिए होते हैं। नवरात्र में हम मां भगवती के नौ रूपों से जुड़ते हैं। सभी रूपों में देवियां प्रकृति या सामाजिक पहलुओं की अभिव्यक्ति से जुड़ी हैं। शैलपुत्री हों या फिर स्कंदमाता या कालरात्रि, इन सबमें कुछ न कुछ संदेश जुड़ा है।