नीति आयोग ने देश में गैर-लाभकारी अस्पताल मॉडल पर आज एक व्यापक अध्ययन जारी किया। यह स्टडी ऐसे संस्थानों के बारे में सूचना की कमी को दूर करने और इस क्षेत्र में मजबूत नीति निर्माण में मदद करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। दरअसल, देश के गैर-लाभकारी अस्पतालों के बारे में काफी कम जानकारी उपलब्ध है।
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी के पॉल ने कहा, “निजी वर्ग में स्वास्थ्य क्षेत्र के विस्तार में अपेक्षाकृत कम निवेश हुआ है। कल घोषित प्रोत्साहन से हमें इस स्थिति को बदलने का मौका मिलता है। गैर-लाभकारी क्षेत्र की रिपोर्ट इस दिशा में उठाया गया एक छोटा कदम है।”
नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत, अपर सचिव डॉ. राकेश सरवाल और अध्ययन में भाग लेने वाले देश भर के अस्पतालों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में यह रिपोर्ट जारी की।
अध्ययन गैर-लाभकारी अस्पतालों के संचालन मॉडल को लेकर अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह स्वामित्व एवं सेवा के आधार के तहत वर्गीकृत अस्पतालों पर शोध-आधारित निष्कर्ष प्रस्तुत करता है और उसके बाद निजी अस्पतालों तथा केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं के साथ उनकी तुलना करता है।
नीति आयोग देश में निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा-वितरण परिदृश्य का व्यापक अध्ययन करता रहा है। जहां लाभकारी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और संस्थानों के बारे में पर्याप्त जानकारी मौजूद है, उन गैर-लाभकारी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और संस्थानों से जुड़ी विश्वसनीय और व्यवस्थित जानकारी की कमी है, जो गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा को सभी के लिए सुलभ और सस्ती बनाने में अपनी अथक सेवा के लिए जाने जाते हैं।
गैर-लाभकारी अस्पताल क्षेत्र न केवल उपचारात्मक बल्कि निवारक स्वास्थ्य सेवा भी प्रदान करता है। यह स्वास्थ्य सेवा को सामाजिक सुधार, सामुदायिक जुड़ाव और शिक्षा से जोड़ता है। यह लाभ की चिंता किए बिना लोगों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए सरकारी संसाधनों और अनुदानों का इस्तेमाल करता है। हालांकि इन तमाम वर्षों में भी इस क्षेत्र का ठीक से अध्ययन नहीं किया गया है।
अध्ययन में गैर-लाभकारी अस्पतालों द्वारा कार्यान्वित लागत-नियंत्रण रणनीतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। यह उन चुनौतियों को समझने का प्रयास करता है जो इन संस्थानों के संचालन पर बोझ डालती हैं और उनके विकास को बाधित करती हैं।
रिपोर्ट में अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतिगत हस्तक्षेपों का प्रस्ताव है- जैसे कि इन अस्पतालों की पहचान करने के लिए एक मानदंड विकसित करना, प्रदर्शन सूचकांक के माध्यम से उनकी रैंकिंग करना और शीर्ष अस्पतालों को परोपकार कार्य करने के लिए बढ़ावा देना आदि। यह दूरस्थ क्षेत्रों में सीमित वित्त के साथ मानव संसाधनों के प्रबंधन में इन अस्पतालों की विशेषज्ञता का इस्तेमाल करने की जरूरत पर भी जोर देता है।