हिमशिखर धर्म डेस्क
सनातन धर्म के प्राचीन शास्त्र हो या फिर महान विद्वानों के नीति ग्रंथ हो, सभी के ज्ञान का सार यही बताया गया है कि किसी भी इंसान को अपने पुराने समय को कभी भूलना नहीं चाहिए। बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने बुरे समय को याद रखना चाहिए। जो व्यक्ति अपने जीवन के भूतकाल को हमेशा याद रखता है, वो अपने जीवन में हमेशा बुलंदियां छूता है। सफल होने के बाद भी हमेशा अपने बुरे वक्त को भी याद रखना चाहिए, इससे भविष्य में किसी तरह की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता।
शास्त्र कहते हैं कि सफल होना उतना मुश्किल कार्य नहीं है जितना सफलता को बनाए रखना। जब असफलता मिलती है, हम मजबूर भी हो जाते हैं उसे स्वीकार करने के लिए। लेकिन, सफलता को पचाना जहर पचाने से भी अधिक कठिन है। जब हनुमानजी ने सीताजी को सूचना दी कि हमारी विजय हुई है, रावण मारा गया। तो सुनते ही सीताजी के हृदय में हर्ष छा गया।
आंखों से आंसू बहने लगे। और, पूछती हैं- हनुमान, मैं तुझे क्या दूं? जो समाचार तूने मुझे सुनाया है, तीनों लोकों में इससे अच्छा मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता। देखिए, सीताजी पूछ रही हैं हनुमानजी से कि मैं तुझे क्या दूं? इस पर हनुमानजी ने जो उत्तर दिया, बड़ा गजब का था।
कहते हैं- ‘सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं। रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं।’ मां, मैंने तो आज सारी दुनिया का राज्य पा लिया, क्योंकि युद्ध में शत्रु को जीतने के बाद जिन रामजी को देखा, वे एकदम निर्विकार हैं। इतनी बड़ी सफलता के बाद भी शांत हैं, उदासीन हैं।
अहंकार ने जरा भी नहीं घेरा उनको। जितने सरल-सहज युद्ध से पहले थे, जीत के बाद भी उतने ही सरल हैं। यहां हनुमानजी ने रामजी को जिस प्रकार से निर्विकार बताया है, इसमें हमारे लिए बड़ा संदेश है कि सफलता माथे चढ़कर नाचने न लगे। मनुष्य को कितनी ही ऊंचाई मिल जाए, अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहिए।