सुप्रभातम्: जनमेजय ने पूछा-दानव, पशु, पक्षी आदि सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति किस तरह हुई❓

महाभारत में राजा जनमेजय की कथा काफी प्रसिद्ध है। वे पाण्डवों  के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे। जिन्होंने तक्षक नाग से  पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ किया था। आज हम आपको राजा जनमेजय के दानव, पशु, पक्षी आदि सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति के सवाल का वर्णन करेंगे।


हिमशिखर धर्म डेस्क

जनमेजय ने कहा–भगवन्! मैं देवता, दानव, गन्धर्व, अप्सरा, मनुष्य, यक्ष, राक्षस और समस्त प्राणियों की उत्पत्ति सुनना चाहता हूँ। आप कृपा करके उसका प्रारम्भ से ही यथावत् वर्णन कीजिये।

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वैशम्पायनजी ने कहा–अच्छा मैं स्वयंप्रकाश भगवान् को प्रणाम करके देवता आदि की उत्पत्ति और नाश की कथा कहता हूँ। ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु को तो तुम जानते ही हो मरीचि के पुत्र कश्यप थे और कश्यप से ही यह सारी प्रजा उत्पन्न हुई है। दक्ष प्रजापति की तेरह कन्याओं का नाम था–अदिति, दिति, दनु, काला, दनायु, सिंहिका, क्रोधा, प्राधा, विश्वा, विनता, कपिला, मुनि और कद्रू। इनसे उत्पन्न पुत्र-पौत्रों की संख्या अनन्त है। अदिति के बारह आदित्य हुए। उनके नाम हैं—धाता, मित्र, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा। दिति का एक पुत्र था हिरण्यकशिपु उसके पाँच पुत्र थे–प्रहलाद, संहलाद, अनुह्लाद, शिबि और बाष्कल। प्रह्लाद के तीन पुत्र थे–विरोचन, कुम्भ और निकुम्भ। विरोचन का बलि और बलि का बाणासुर बाणासुर भगवान् शंकर का महान् सेवक था। वह महाकाल के नाम से प्रसिद्ध है। दनु के चालीस पुत्रों में विप्रचित्ति सबसे बड़ा, यशस्वी और राजा था। दानवों की संख्या असंख्य है। सिंहिका से राहु हुआ, जो सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसता है। क्रूरा (क्रोधा) से सुचन्द्र, चन्द्रहन्ता और चन्द्रप्रमर्दन आदि पुत्र-पौत्र हुए। क्रोधवश नाम का एक गण भी हुआ था। दनायु से चार पुत्र हुए–विक्षर, बल, वीर और वृत्रासुर। काला से विनाशन, क्रोध, क्रोधहन्ता, क्रोधशत्रु और कालकेय नाम से प्रसिद्ध असुर हुए।

भृगु ऋषि से असुरों के पुरोहित शुक्राचार्य का जन्म हुआ। इनके चारों पुत्र, जिनमें त्वष्टाधर और अत्रि प्रधान थे, असुरों का यज्ञ-याग कराया करते। यह असुर और सुरवंश की उत्पत्ति पुराणों के अनुसार है। इनके पुत्र-पौत्रों की गणना सम्भव नहीं है। तार्क्ष्य, अरिष्टनेमि, गरुड़, अरुण, आरुणि और वारुणि–ये वैनतेय कहलाते हैं। शेष, अनन्त, वासुकि, तक्षक, भुजंगम, कूर्म, कुलिक आदि सर्प कद्रू के पुत्र हैं। भीमसेन, उग्रसेन, सुपर्ण, नारद आदि सोलह देवगन्धर्व कश्यप-पत्नी मुनि के पुत्र हैं। ये सभी बड़े कीर्तिमान्, बलवान् और जितेन्द्रिय हैं। प्राधा नाम की दक्षकन्या से भी अनवद्या, मनुवंशा आदि कन्याएँ और सिद्ध, पूर्ण, बर्हि आदि देवगन्धर्व उत्पन्न हुए। प्राधा से ही अलम्बुषा, मिश्रकेशी, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अरुणा, रक्षिता, रम्भा, मनोरमा, केशिनी, सुबाहु, सुरता, सुरजा, सुप्रिया आदि अप्सराएँ और अतिबाहु, हाहा, हूहू और तुम्बुरु–ये चार गन्धर्व भी हुए। कपिला से गौ, ब्राह्मण, गन्धर्व और अप्सराएँ उत्पन्न हुईं। इस प्रकार मैंने तुम्हें सभी की उत्पत्ति सुना दी। इनमें सर्प, सुपर्ण, रुद्र, मरुत् और गौ, ब्राह्मण आदि सभी हैं।

ब्रह्मा के मानसपुत्र छः ऋषियों के नाम पहले ही बतला चुका हूँ। उनके सातवें पुत्र थे स्थाणु। स्थाणु के परम तेजस्वी ग्यारह पुत्र हुए–मृगव्याध, सर्प, निर्ऋति, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, पिनाकी, दहन, ईश्वर, कपाली, स्थाणु और भव। इन्हें ही ग्यारह रुद्र कहते हैं। अंगिरा के तीन पुत्र हुए–बृहस्पति, उतथ्य और संवर्त। अत्रि के बहुत-से पुत्र हुए। पुलस्त्य के राक्षस, वानर, किन्नर और यक्ष हुए। पुलह के शलभ, सिंह, किम्पुरुष, व्याघ्र, यक्ष और ईहामृग (भेड़िया) जाति के पुत्र हुए। क्रतु के वालखिल्य हुए। ब्रह्माजी के दायें अँगूठे से दक्ष और बायें से उनकी पत्नी का जन्म हुआ। उस पत्नी से दक्ष की पाँच सौ कन्याएँ हुईं। पुत्रों का नाश हो जाने पर दक्षप्रजापति ने कन्याओं का विवाह इस शर्त पर किया कि उनके प्रथम पुत्र उन्हें मिल जायँ। उन्होंने दस कन्याओं का विवाह धर्म से, सत्ताईस का चन्द्रमा से और तेरह का कश्यप से किया था। धर्म की दस पत्नियों के नाम ये हैं—कीर्ति, लक्ष्मी, धृति, मेधा, पुष्टि, श्रद्धा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा और मति। धर्म के द्वार होने के कारण इन्हें उसकी पत्नी कहा गया है। सत्ताईस नक्षत्र चन्द्रमा की पत्नियाँ। वे समय की सूचना देती हैं।

ब्रह्माजी के पुत्र मनु, मनु के प्रजापति और प्रजापति के आठ वसु हुए–धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास। धर और ध्रुव की माँ का नाम धूम्रा, सोम की माँ का मनस्विनी, अह की माँ का रता, अनिल की माँ का श्वसा, अनल की माँ का शाण्डिली तथा प्रत्यूष और प्रभास की माता का नाम प्रभाता था। धर के दो पुत्र हुए–द्रविण और हुतहव्यवह। ध्रुव के काल, सोम के वर्चा, वर्चा के शिशिर, प्राण और रमण नाम के तीन पुत्र हुए। अह के चार पुत्र हुए–ज्योति, शम, शान्त और मुनि। अनल के कुमार हुए। कृत्तिकाओं ने इनका मातृत्व स्वीकार किया था, इसलिये इन्हें कार्तिकेय भी कहते हैं। इनके तीन पुत्र हुए–शाख, विशाख और नैगमेय। अनिल की पत्नी शिवा से मनोजव और अविज्ञातगति नाम के दो पुत्र हुए। प्रत्यूष के पुत्र थे देवल ऋषि। उनके भी दो पुत्र हुए थे–क्षमावान् और मनीषी। बृहस्पति की बहिन ब्रह्मवादिनी और योगिनी थी वही प्रभास की पत्नी हुई। उसी से देवताओं के कारीगर विश्वकर्मा का जन्म हुआ। उन्होंने ही देवताओं के भूषण और विमानों का निर्माण किया है। मनुष्य भी उन्हीं की कारीगरी के आधार पर अपनी जीविका करते हैं। भगवान् धर्म ब्रह्माजी के दाहिने स्तन से मनुष्य रूप में प्रकट हुए थे ! उनके तीन पुत्र हुए–शम, काम और हर्ष। उनकी पत्नियों का क्रमशः नाम था–प्राप्ति, रति और नन्दा। सूर्य की पत्नी बड़वा (घोड़ी) से अश्विनीकुमारों का जन्म हुआ। अदिति के बारह पुत्रों की गणना की जा चुकी है। इस प्रकार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र, प्रजापति और वषट्कार–ये मुख्य तैंतीस देवता होते हैं। इनके गण भी हैं–जैसे रुद्रगण, साध्यगण, मरुद्गण, वसुगण, भार्गवगण और विश्वेदेवगण। गरुड़, अरुण और बृहस्पति की गणना आदित्यों में ही की जाती है। अश्विनीकुमार, ओषधि और पशु आदि की गिनती गुह्यकगण में है। इन देवगणों का कीर्तन करने से सारे पाप छूट जाते हैं।

महर्षि भृगु ब्रह्मा के हृदय से प्रकट हुए थे। भृगु के शुक्राचार्य के अतिरिक्त च्यवन नामक पुत्र हुए। ये अपनी माता की रक्षा के लिये गर्भ से निकल आये थे। उनकी पत्नी का नाम था आरुणी। उसकी जाँघ से और्व का जन्म हुआ। और्व के ऋचीक और ऋचीक के जमदग्नि हुए। जमदग्नि के चार पुत्रों में परशुरामजी सबसे छोटे थे, परन्तु गुणों में सबसे बड़े। वे शास्त्रकुशल तो थे ही, शस्त्रकुशल भी थे। उन्होंने ही क्षत्रियकुल का नाश किया था। ब्रह्मा के दो पुत्र और भी थे–धाता और विधाता। वे मनु के साथ रहते हैं। कमलों में निवास करने वाली लक्ष्मी उन्हीं की बहिन हैं। शुक्र की पुत्री देवी वरुण की पत्नी हुई। उसके पुत्र का नाम हुआ बल और पुत्री का सुरा। जब प्रजा अन्न के लोभ से एक-दूसरे का हक खाने लगी तब उस सुरा से ही अधर्म की उत्पत्ति हुई, जो समस्त प्राणियों का नाश कर देता है। अधर्म की पत्नी का नाम था निर्ऋति। उसके तीन बड़े भयंकर पुत्र थे–भय, महाभय और मृत्यु। मृत्यु के पत्नी पुत्र कोई नहीं हैं।

ताम्रा के पाँच कन्याएँ हुईं–काकी, श्येनी, भासी, धृतराष्ट्री और शुकी। काकी से उलूक, श्येनी से बाज, भासी से कुत्ते और गीध, धृतराष्ट्री से हंस-कलहंस एवं चक्रवाक और शुकी से तोतों का जन्म हुआ। क्रोधा से नौ कन्याएँ हुईं–मृगी, मृगमन्दा, हरी, भद्रमना, मातंगी, शार्दूली, श्वेता, सुरभि और सुरसा। मृगी से मृग, मृगमन्दा से रीछ और सृमर (छोटी जाति के मृग), भद्रमना से ऐरावत हाथी, हरी से चंचल घोड़े, वानर एवं गौ के समान पूँछ वाले दूसरे पशु तथा शार्दूली से सिंह, बाघ और गैंडे उत्पन्न हुए। मातंगी से सब तरह के हाथी और श्वेता से श्वेत दिग्गज हुए। सुरभि से रोहिणी, गन्धर्वी, विमला और अनला नाम की चार कन्याएँ हुईं। रोहिणी से गाय-बैल, गन्धर्वी से घोड़े, अनला से खजूर, ताल, हिन्ताल, ताली, खर्जूरिका, सुपारी और नारियल–ये सात पिण्डफल वाले वृक्ष उत्पन्न हुए। अनला की पुत्री शुकी ही तोतों की जननी हुई। सुरसा से कंक पक्षी और नागों का जन्म हुआ। अरुण की भार्या श्येनी से सम्पाति और जटायु हुए। कद्रू से सर्पों की उत्पत्ति तो कही ही जा चुकी है। इस प्रकार मुख्य मुख्य प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया। इस वृत्तान्त का श्रवण करने से पापियों के पाप तो छूटते ही हैं, सर्वज्ञता की प्राप्ति भी होती है और अन्त में उत्तम गति मिलती है।

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