हिमशिखर धर्म डेस्क
राम शास्त्री जी पेशवा माधवराव के गुरु थे। राम शास्त्री जी को दरबार में महत्वपूर्ण पद भी दिया गया था। सभी जानते थे कि वे बहुत सादगी से रहना पसंद करते हैं।
एक बार राजभवन में कोई उत्सव था, जिसमें राम शास्त्री जी की पत्नी भी शामिल हुई थीं। रानी ने देखा कि शास्त्री जी की पत्नी ने बहुत साधारण वस्त्र पहने हैं। तब रानी ने उन्हें बहुत महंगे वस्त्र और आभूषण पहनाए। उत्सव खत्म होने के बाद रानी ने उन्हें राज पालकी में बैठाकर विदा किया।
जब पालकी शास्त्री जी के घर पहुंची तो कहारों ने दरवाजा खटखटाया। शास्त्री जी ने दरवाजा खोला, एक नजर पत्नी को और कहारों को देखकर दरवाजा फिर से बंद कर दिया।
कहारों ने फिर से कहा, ‘दरवाजा खोलिए, आपकी पत्नी राजभवन से लौट आई हैं। शास्त्री जी ने दरवाजा नहीं खोला और अंदर से उत्तर दिया, ‘आप लोग भूल से यहां आ गए हैं।’
शास्त्री जी की पत्नी समझ गईं और लौटकर राजभवन गईं। राजभवन में उन्होंने रानी को सभी चीजें लौटाकर कहा, ‘आपके इन वस्त्र और आभूषणों की वजह से आज मेरे लिए घर के दरवाजे बंद हो गए हैं।’
अपने पुराने वस्त्र पहनकर जैसे राजभवन आई थीं, उसी अवस्था में लौटकर अपने घर आ गईं। तब घर का दरवाजा खुला और शास्त्री जी ने कहा, ‘देवी तुम जानती हो, ये राजकीय वस्त्र, आभूषण राजकीय लोगों को शोभा देते हैं। हम सेवक हैं और सादगी ही हमारा आभूषण है।’
सीख – यहां राम शास्त्री जी का व्यक्तित्व हमें शिक्षा दे रहा है कि हमारे कपड़े और ज्वेलरी दूसरों को नीचा दिखाने के लिए, किसी को आकर्षित करने के लिए नहीं होना चाहिए। हमारे व्यवहार में सादगी होनी चाहिए। वर्ना दूसरों के मन में हमारे लिए ईर्ष्या पनपेगी और वे हमारे सामने खुद को अपमानित महसूस करेंगे।