पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज आषाढ़ मास की 24 है।
आज का पंचांग
रविवार, जुलाई 7, 2024
सूर्योदय: 05:29 ए एम
सूर्यास्त: 07:23 पी एम
तिथि: द्वितीया – 04:59 ए एम, जुलाई 08 तक
नक्षत्र: पुष्य – पूर्ण रात्रि तक
योग: हर्षण – 02:13 ए एम, जुलाई 08 तक
करण: बालव – 04:38 पी एम तक
द्वितीय करण: कौलव – 04:59 ए एम, जुलाई 08 तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: रविवार
अमान्त महीना: आषाढ़
पूर्णिमान्त महीना: आषाढ़
चन्द्र राशि: कर्क
सूर्य राशि: मिथुन
जगन्नाथ यात्रा आज से
जगन्नाथ यानी कि जगत के नाथ जो ब्रह्मांड के भगवान और श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं। हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ओडिशा के पुरी में प्रभु की भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ दो और रथ इस यात्रा में शामिल होते हैं, जिसमें उनके भाई और बहन शामिल होते हैं। यात्रा के लिए तैयार होने के बाद तीनों रथों की पूजा की जाती है। उसके बाद सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के रास्ते को साफ किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा रविवार की शाम 5 बजे शुरू होगी लेकिन उसका साक्षी बनने के लिए जनसैलाब पुरी पहुंचने लगा है। भगवान जगन्नाथ मंदिर से लेकर गुडि़चा मंदिर तक तीन किलोमीटर में समुद्री लहरों की तरह लोगों का हुजूम नजर आ रहा है। शनिवार रात दो बजे से मंदिर के अंदर विधान शुरू हो चुके हैं। रविवार शाम 5 बजे भगवान जगन्नाथ के पहले भक्त पुरी के राजा गजपति महाराज पालकी में सवार होकर मंदिर आएंगे। वे सोने की झाड़ू से रथ के आगे-आगे सफाई करने की परंपरा निभाएंगे। इसे छेरा पहरा कहा जाता है। तीनों रथों के लिए अलग-अलग झाड़ू रहेगी। झाड़ू नारियल के पत्ते का बना होता है। झाडू को पकड़ने वाले स्थान पर सोने की रिंग लगी रहती है। इसलिए इसे सोने की झाडू भी कहा जाता है। सेवा की परंपरा के बाद झाड़ू और सोने की रिंग को भगवान जगन्नाथ के खजाने में रख दिया जाता है।
कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत
भगवान जगन्नाथ की यात्रा सदियों से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में हुई थी। एक कथा के अनुसार, एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से कहा कि वे नगर को देखना चाहती हैं। इसके बाद अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए दोनों भाइयों ने बड़े ही प्यार से एक रथ तैयार करवाया। इस रथ में तीनों भाई- बहन सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले थे और भ्रमण पूरा करने के बाद वापस पुरी लौटे। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।