स्मृति शेष : सरस्वती के वरद पुत्र थे शास्त्री जया नन्द उनियाल

भागवत विभूषण, भागवताचार्य, अलौकिक शक्ति सम्पन्न, अद्वितीय मनीषी शास्त्री जया नन्द उनियाल जी को अश्रुपूर्ण भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि सादर समर्पित

Uttarakhand

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूय: ।

अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।

न शब्द है न कुछ सामर्थ्य है, ऐसे मनीषी महापुरुष को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने का मन बना रहा हूं जिनकी चरण रज के बरावर भी नहीं हूं। क्या लिख पाऊंगा, फिर भी सूर्य को दीपक दिखाने का यह लघु प्रयास अपनी लघुता को ही उजागर करेगा, फिर भी शब्द हीन यह प्रयास उस दिव्यात्मा से स्नेहिल आशीष प्रदान करेगा।

स्मृति शेष अलौकिक विभूति, संस्कृत व्याकरणविद्, हिंदी – अंग्रेजी पर पूरी पकड़, धर्मात्मा, स्वस्थ शरीर तक ही नहीं, अपितु जीवन पर्यन्त धर्म पालन में रत, सत्य वक्ता, सरस्वती पुत्र आदरणीय श्री जया नन्द उनियाल जी 16 फरवरी 2022 से हमारे मध्य नहीं है, माघी पूर्णिमा को अपने द्वितीय सुपुत्र के आवास पर सभी बच्चों को एक अपलक नजर से देखने के बाद अन्तिम स्वांस ली। अगले दिन सुबह ग्यारह बजे क्या भव्य अन्तिम शोभा यात्रा थी। वाक् विदग्ध मानव के एक झलक देखने के लिए उत्तराखंड के हर भाग से मानव मेला जैसा दृश्य नजर आ रहा था। हर समय उनकी ज्ञान पिपासा शान्त नहीं होती थी और आजन्म पूर्ण नहीं हो सकी ( ज्ञान की भूख तो मिटती ही नहीं है) सदैव शुभ चिन्तन, मनन व हरेक मानव को परखना नहीं पर उससे कुछ न कुछ सकारात्मक वार्ता को स्वीकार करने की अभिलाषा आज हम सबके लिए प्रेरणा छोड़ कर ही अपने पंच भौतिक शरीर को पर ब्रह्म में विलीन करते हुए हमारे पथ को प्रशस्त कर अखण्ड ब्रह्माण्ड नायक के चरित्र को उजागर करते-करते स्वयं भी उसी शक्ति में लीन हो गए हैं। आपने उत्तराञ्चल को अपने जन्म से धन्य किया और फिर ऐसी विभूति बार बार जन्म भी कहां लेती हैं, शायद अवतरण था। अपने जीते जी अपने और अपनों के कल्याण के लिए लगातार महान् प्रयत्न किया व जितने भी आपके सम्पर्क में आए सबको कृतार्थ किया। तभी तो जो शास्त्रों में कहा है उसे आपने सिद्ध भी किया।-

यावत्स्वस्थमिदं शरीरमरुजं यावज्जरा दूरतो

यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुष: ।

आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्य: प्रयत्नो महान् ,

संदीप्ते भवने तु कूपखनने प्रत्युद्यम: कीदृश: ।।

 टिहरी गढ़वाल के मखलोगी पट्टी के बंगोली गांव की पवित्र माटी को आपको अपनी गोदी में खिलाने का सौभाग्य मिला। पण्डितराज श्री इन्द्र मणि उनियाल जी के घर चार चांद लगाने वाले एक मात्र सुपुत्र आपका लालन-पालन माता जो सावली गांव के सम्मानित बहुगुणाओं की दुहिता श्रीमती लीलावती उनियाल थी ने, (माता और पिता की) प्रसन्नता का कारक आपका आविर्भाव रहा। पांच आषाढ़ सम्बत् 1981 ( 19 जून सन् 1924) में आपका प्रादुर्भाव सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए आनन्दोत्सव की तरह था। विलक्षण प्रतिभा के धनी आपका जन्म मां राजराजेश्वरी के चहेते परिवार व उनियाल वंश में होना सर्व श्रेष्ठ रहा। ऐसी प्रतिभा अलौकिक थी प्रारम्भिक शिक्षा नकोट में, फिर संस्कृत शिक्षा हेतु ऋषिकेश में मन इच्छित विद्यालय न मिलने से कितने ही विद्यालयों को परिवर्तित किया, फिर हरिद्वार में भी कुछ विद्यालयों को परखा और शास्त्री की उपाधि प्राप्त करने के लिए काशी को अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए चयनित किया और परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर (टापर) देव भूमि के मान सम्मान को ऊंचा उठाने में सफल रहे, अपनी वाक् पटुता से प्रत्येक मिलने वाले को अभिभूत कर अपना अनुचर बना देते थे। मात्र सोलह वर्ष की आयु में श्रीमद्भागवत कथा करना किसी न किसी रूप में विलक्षणता को ही प्रकट करता है या मां राजराजेश्वरी का आशीर्वाद रहा, यह वही समक्ष सकते हैं या मां ही बता सकती है। (आज की तरह नहीं) क्या शिक्षा थी, बड़े बड़े ज्ञानी सन्त महन्त आपकी विद्वता के कायल थे। हर छोटे-बड़े से प्रीति पूर्ण व्यवहार से आपकी सहानुभूति सदैव झलकती थी।

आपका परिवार एक कुल है, सुशिक्षित, संस्कारवान एवं कर्त्तव्य निष्ठ।

 आपके घर पर कुल भूषण श्री हेमा नन्द उनियाल जी ने बड़े सुपुत्र के रूप में जन्म लेकर सरस्वती के वरद पुत्र माने जाते हैं, सामान्य रूप से भरा पूरा परिवार छोड़ कर ( 07 पौत्र 06 पौत्री, पुत्रियों के 07 पुत्र 11 पुत्रियां) बैकुण्ठ वासी हुए, यह शाश्वत सत्य भी है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा भी है कि —

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ।।

पारिवारिक पृष्ठभूमि पर चिन्तन कर रहे थे, उस पर चर्चा आवश्यक भी है।

आपका चिन्तन था कि जिस वंश का दूध पिया उसी वंश से पुत्र वधू आएगी तो पूरे कुल का उद्धार होगा और सावली से ही आदरणीय वाचस्पति बहुगुणा जी की सुपुत्री आयुष्यमति विजया के साथ परिणय करवाया, जिनके दो सुपुत्र व दो सुपुत्रियां हैं । दूसरे सुपुत्र श्री कृष्णा नन्द उनियाल वाक् विदग्ध सम्पूर्ण गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया , उपाध्याय परिवार से धर्म पत्नी को चयनित कर एक सुपुत्र व एक सुपुत्री के साथ आनन्द मय जीवन यापन कर रहे हैं। तीसरे सुपुत्र श्री शोभा नन्द उनियाल इण्टर कॉलेज के प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत्त होकर लखेड़ा वंश की अर्द्धांगिनी एक सुपुत्री व दो सुपुत्रों के साथ उत्तराखंड की राजधानी में अवस्थित हैं। चतुर्थ सुपुत्र श्री शेखरानन्द उनियाल जी सावली गांव की बहुगुणा बालिका जिनके पूर्वज कौड में बस गए थे, श्री ओमप्रकाश बहुगुणा जी की सुपुत्री को पत्नी स्वीकार कर अपने दोनों सुपुत्रों के साथ नई टिहरी में इण्टर कॉलेज में शिक्षण कर रहे हैं। पंचम सुपुत्र श्री विवेक उनियाल जी पन्त परिवार की दुहिता श्रीमती इला उनियाल और अपनी दो आत्मजाओं सहित ऋषिकेश में पिता श्री के चरण चिन्हों का अनुकरण कर व्यास पीठ को सुशोभित कर रहे हैं। पांच सुपुत्रियां सबसे बड़ी श्रीमती विमला डोभाल मुम्बई में अपने दो सुपुत्रों व दो सुपुत्रियों ( विवाहिता ) के साथ निवास करती हैं, दूसरी सुपुत्री श्रीमती सरला बहुगुणा यथा नाम तथा गुण सावली के पण्डित वर्य प्रात:स्मरणीय श्री तारादत्त बहुगुणा जी के कनिष्ठ सुपुत्र श्री वीरेन्द्र दत्त बहुगुणा जी की सहधर्मिणी हैं, हत भाग्य से पति को असाध्य रोग से नहीं बचा पाई पर विधि का विधान कौन मिटा सकता है। आज ऋषिकेश में अपने दो सुपुत्रों व एक सुपुत्री ( विवाहित) के साथ निवास करती हैं, तीसरी सुपुत्री श्रीमती निर्मला बिजल्वाण अपने सुपुत्र तथा पांच सुपुत्रियों जिनका पाणि ग्रहण करवा दिया है, अपने परिवार के साथ भानिया वाला में रहती हैं, चतुर्थ सुपुत्री श्रीमती सम्पूर्णा जोशी देहरादून में परिवार सहित दो सुपुत्रियों व एक सुपुत्र के साथ निवास करती हैं, पंचम सुपुत्री श्रीमती कौशल्या कुकरेती परिवार सहित एक सुपुत्र व सुपुत्री के साथ ऋषिकेश में निवास करती हैं। क्या विलक्षण प्रतिभा का धनी आपका परिवार है, ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि सबको ऐसा ही परिवार मिले, सबका ऐसा ही परिवार हो। सर्व धर्म समभाव की भावना से ओत-प्रोत। 2002 में असमय धर्म पत्नी के निधन से आपको बहुत आघात लगा। इतना ही नहीं बहुत कष्ट प्रद जीवन उस समय था जब अपनी दो पौत्रियों व एक द्येवती (पुत्री की पुत्री) को सौभाग्य से विरत होते देखा, किन्तु विद्वान् व्यक्तित्व ने इस आघात की चोट का दर्द कभी भी प्रकट नहीं किया। आज आपके जाने के बाद यह सब बरवस याद आ रहा है। आपके अनुभवों को लिपिबद्ध करने का आग्रह किया था पर आपका कथन था किसके लिए? कौन है आज? जो हमारे जाने के बाद पढ़ेगा? शायद कोई नहीं! आपका विश्वास कर्म पर था, कर्त्तव्य पालन पहले, शायद गीता का यह उपदेश आपके मन मस्तिष्क में गहन पैठ बना कर बैठा था।एक बार जिस पुस्तक को देख लिया उसे समझ लिया यह थी विशिष्टता। अधिकांश कहा करते थे कि दुनिया मेरे लिए सब कुछ कह सकती है पर यह कभी नहीं कह सकती कि जया नन्द ने असत्य कहा है।एक बार जब पेट की गर्मी के कारण जीभ पर छाले पड़े थे तब यह उद्गार स्वयं प्रस्फुटित हुए थे।

गीता ही नहीं अधिकांश पुराण कण्ठस्थ थे, कहा करते थे कि श्रीमद्भागवत के मूल पाठ में मुझे इकत्तीस घण्टे का समय लगता है।आज मूल पाठ ईश्वर इच्छा पर आधारित है। गीता का यह कथन आप पर खरा उतरता है। —

*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

*मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।

आप उदार थे —

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम् ।

इस क्षति की पूर्ति होनी असम्भव है, समूचे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, यह जन ईश्वर से प्रार्थना करता है कि दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करने की कृपा करेंगे व अपने श्री चरणों में स्थान देंगे तथा शोक संतप्त परिवार व परिजनों को इस महान दु:ख को सहन करने की शक्ति प्रदान करेंगे। केवल हम ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं, दिव्य विभूति को मोक्ष व विष्णु वैकुण्ठ लोक तो निश्चित मिलना ही है, फिर भी मानव का ज्ञान सीमित है ऐसे में अपने मानस गुरु की पुण्यात्मा को कोटि-कोटि नमन करते हुए अपने श्रद्धासुमन सादर समर्पित कर रहा हूं। ॐ शान्ति ॐ शान्ति ॐ शान्ति ॐ।

विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह: ।

निर्ममो निरहङ्कार: स शान्तिमधिगच्छति ।।

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