पितृ पक्ष की एकादशी आज : सुबह करें विष्णु जी और महालक्ष्मी की पूजा, दोपहर में पितरों के लिए श्राद्ध कर्म और शाम को करें तुलसी पूजन

हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का बहुत महत्व है। कहते हैं एकादशी का व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में हर एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। 

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पंडित उदय शंकर भट्ट

आज (शनिवार, 2 अक्टूबर) पितृ पक्ष की एकादशी है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में इंदिरा एकादशी का व्रत किया जाता है। पितृ पक्ष की एकादशी का महत्व काफी अधिक है। इस तिथि पर विष्णु जी और देवी लक्ष्मी पूजा और पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है।

जिन लोगों ने संन्यास अपना लिया था और उनकी मृत्यु हो गई, अगर उनकी मृत्यु तिथि मालूम न हो तो ऐसे मृत लोगों का श्राद्ध कर्म पितृ पक्ष की इंदिरा एकादशी पर किया जाता है।

शनिवार को सुबह स्नान के बाद विष्णु जी के सामने व्रत करने और पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए। विष्णु जी और देवी लक्ष्मी का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। इसके लिए केसर मिश्रित दूध शंख में भरें और देवी-देवता को अर्पित करें। इस दौरान ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। अभिषेक के बाद शुद्ध जल चढ़ाएं। इसके बाद वस्त्र, पुष्प हार आदि चढ़ाएं, तिलक लगाएं और अन्य श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।

विष्णु जी और लक्ष्मी जी के सामने धूप-दीप जलाएं। मिठाई का भोग लगाएं। कर्पूर जलाकर आरती करें। इस तरह पूजा करने के बाद भगवान से पूजन में हुई जानी-अनजानी भूल के लिए क्षमा याचना करें। पूजा के बाद प्रसाद अन्य भक्तों को बांटें और खुद भी ग्रहण करें।

ऐसे कर सकते हैं श्राद्ध कर्म

परिवार के जिन लोगों की मृत्यु एकादशी तिथि पर हुई है, उनके लिए श्राद्ध कर्म शनिवार, 2 अक्टूबर की दोपहर में करीब 12 बजे करें। गाय के गोबर से बने कंडे के अंगारों पर गुड़-घी और भोजन अर्पित करें, पितरों का ध्यान करें। हाथ में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें। इस दिन किसी गौशाला में धन और हरी घास का दान करें। घर की छत पर कौओं के लिए और घर के बाहर कुत्तों के लिए खाना रखें।

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एकादशी पर करनी चाहिए तुलसी की विशेष पूजा

हर एकादशी पर तुलसी की विशेष जरूर करनी चाहिए। तुलसी के साथ ही शालीग्राम की भी पूजा करें। शनिवार को सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें। ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

शनिवार और एकादशी के योग में कर सकते हैं ये शुभ काम भी

हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और दीपक जलाकर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। बाल गोपाल का अभिषेक करें। तुलसी के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

ऐसी है इंद‍िरा एकादशी की व्रत कथा

इंद‍िरा एकादशी की कथा धर्मराज युधिष्ठिर को स्‍वयं भगवान कृष्‍ण ने सुनाई थी। पौराण‍िक कथा के अनुसार युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनों। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।

प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।

तब ऋषि ने कहे ये वचन

सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहां यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए।

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तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो। मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेश दिया सो मैं तुम्हें कहता हूं। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।

तब राजा को महर्षि ने बताई यह बात

इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करुंगा। हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूंघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध,पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।

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