पितृपक्ष की शुरुआत 17 या 18 से: जानें श्राद्ध के नियम, विधि और महत्व

दो दिन पूर्णिमा होने से पितृपक्ष को लेकर इस बार कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है, कुछ लोग 17 सितंबर को पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध कर रहे हैं तो कुछ 18 सितंबर से। कुछ लोगों में पितृपक्ष की तिथि को लेकर मतभेद चल रहे हैं। पितृपक्ष में पितरों के नाम का दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। आइए जानते हैं पितृपक्ष की शुरुआत कब से हो रही है।


पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

 पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक स्मरण करने का अवसर श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक रहेगा। शास्त्रों में मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में हमारे पूर्वज धरती पर सूक्ष्म रूप से आकर परिजनों के पिंडदान और तर्पण को स्वीकार करते हैं। पितृ विसर्जन यानी श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को पूर्वज पृथ्वी से विदा होकर मुक्तिलोक की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। वहीं पितृपक्ष के दौरान सारे शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।

भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष होता है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान ब्रह्मांड की ऊर्जा के साथ पितरों की आत्मा पृथ्वी पर व्याप्त रहती है। जिस दिन किसी स्त्री या पुरुष की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। कई बार ऐसा होता है कि हम अपने किसी पूर्वज का श्राद्ध तो करना चाहते हैं, लेकिन हम उनकी मृत्यु की तिथि नहीं जानते। ऐसे में यदि हमें अपने पूर्वज के निधन की तिथि मालूम नहीं हो, तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस वर्ष 17 सितंबर को पूर्णिमा तिथि दोपहर 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 18 को सुबह 8 बजकर 3 मिनट तक रहेगी।

पूर्णिमा 17 सितंबर को सुबह 11 बजे के बाद लग जाएगी। चूंकि श्राद्ध में उदया तिथि का विचार नहीं किया जाता है और श्राद्ध दोपहर को ही किया जाता है, इसलिए पूर्णिमा का श्राद्ध इस दिन किया जा सकता है। 18 को प्रतिपदा का श्राद्ध किया जाएगा। इसके बाद एक-एक तिथि में श्राद्ध किया जा सकता है।

पूर्णिमा का श्राद्ध 17 को दोपहर और प्रतिपदा का श्राद्ध 18 को किया जाएगा। पितृ विसर्जन 2 अक्तूबर को किया जाएगा। दो दिन पूर्णिमा होने से, पूर्णिमा का व्रत 17 और स्नान दान 18 को सुबह किया जाएगा। श्राद्ध पक्ष में गाय, ब्राह्मण, कौआ, कुत्ता और चींटी को भोजन खिलाना उत्तम माना गया है। उत्तराखंड विद्वत सभा के पूर्व अध्यक्ष पं. उदय शंकर भट्ट का कहना है कि भारतीय सनातन संस्कृति में मृत्यु के साथ जीवन समाप्त नहीं होता है। मनुष्य को अपने पितृगणों की आत्मा की शांति और अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

कब कौन सा होगा श्राद्ध  
पूर्णिमा का श्राद्ध- 17 सितंबर
प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध – 18 सितंबर
द्वितीया तिथि का श्राद्ध – 19 सितंबर
तृतीया तिथि का श्राद्ध – 20 सितंबर
चतुर्थी तिथि का श्राद्ध – 21 सितंबर
पंचमी तिथि का श्राद्ध – 22 सितंबर
षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध – 23 सितंबर
अष्टमी तिथि का श्राद्ध – 24 सितंबर
नवमी तिथि का श्राद्ध – 25 सितंबर
दशमी तिथि का श्राद्ध – 26 सितंबर
एकादशी तिथि का श्राद्ध – 27 सितंबर
द्वादशी तिथि का श्राद्ध – 29 सितंबर
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध – 30 सितंबर
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध – 1 अक्तूबर
सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष समाप्त- 2 अक्तूबर को होगा।

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