सामान्य तौर पर घमंड को अहंकार का पर्याय माना जाता है कितु ऐसा नहीं है। इनके अंतर को समझना आवश्यक है। अहंकार चेतना की वृत्त का नाम है। जिसके द्वारा व्यक्ति को अपने होने का अहसास होता है। अहंकार के अनेक रूप होते हैं।
हिमशिखर खबर ब्यूरो।
आज शनिवार, 5 फरवरी को बसंत पंचमी है। ये पर्व विद्या की देवी सरस्वती के प्रकट उत्सव के रूप में मनाया जाता है। देवी सरस्वती अपने भक्तों को विद्या प्रदान करती हैं। विद्यावान लोगों को घमंड से बचना चाहिए। विद्या हमें विनम्रत प्रदान करती है, इसलिए हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए।
महाकवि कालिदास और देवी सरस्वती से जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रचलित है। इस किस्से का संदेश यह है कि विद्वान व्यक्ति को घमंड शोभा नहीं देता है। एक बार महाकवि कालिदास यात्रा पर थे। रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो वे किसी गांव के कुएं पर रुक गए।
कुएं पर एक महिला पानी भर रही थी। कालिदास ने उस महिला से कहा, ‘मुझे प्यास लग रही है, कृपया पीने के लिए पानी दे दीजिए।’
महिला ने कहा, ‘आपको मैं नहीं जानती, कृपया अपना परिचय दीजिए। इसके बाद ही मैं आपको पानी दे सकती हूं।
कालिदास जी ने अहंकार के साथ कहा, ‘मैं मेहमान हूं।’
महिला ने कहा, ‘आप मेहमान कैसे हो सकते हैं, संसार में मेहमान दो ही हैं, एक धन और दूसरा यौवन।’
ये बात सुनते ही कालिदास आश्चर्यचकित हो गए। एक महिला से इस तरह की बात की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने फिर कहा, ‘मैं सहनशील हूं।’
महिला बोली, ‘आप सहनशील नहीं है। इस संसार में सहनशील सिर्फ दो ही हैं। एक धरती है, जो पापी और पुण्यात्माओं का बोझ उठाती है। दूसरे सहनशील पेड़ हैं, जो पत्थर मारने पर भी फल ही देते हैं।’
कालिदास ने कहा, ‘मैं हठी हूं।’
महिला बोली, ‘आप हठी भी नहीं हैं। हमारे नाखून और बाल, ये दोनों हठी हैं। बार-बार काटने पर भी ये फिर से बढ़ जाते हैं।
महिला की ऐसी बातें सुनकर कालिदास बोले, ‘मैं मूर्ख हूं।’
महिला ने कहा, ‘आप मूर्ख भी नहीं हैं। मूर्ख तो राजा और दरबारी होते हैं। राजा बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है। दरबारी राजा को खुश करने के लिए झूठी प्रशंसा करते हैं।’
महिला की विद्वता के सामने कालिदास हार गए और वे महिला के चरणों में गिर पड़े। तभी महिला ने कहा, ‘उठो वत्स।’
कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां देवी सरस्वती खड़ी थीं। देवी ने कहा, ‘विद्या से ज्ञान मिलता है, न कि घमंड। तूझे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था। इसलिए तेरा घमंड तोड़ने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा।’
कालिदास ने देवी से क्षमा याचना की और अहंकार का त्याग का संकल्प लिया।
सीख – इस किस्से की सीख यही है कि हमें कभी भी अपने ज्ञान का घमंड नहीं करना चाहिए। ज्ञानी व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए।